उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्र उत्तरकाशी में पर्यावरण संरक्षण को लेकर सरकारी और निजी संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। पौधरोपण के प्रति जागरूकता बढ़ने के बावजूद, इन संस्थानों ने रोपे गए पौधों का पोषण सुनिश्चित कर उन्हें पेड़ में परिवर्तित करने पर विशेष ध्यान दिया है। विशेष रूप से, कोरोना काल के दौरान इन संस्थानों ने गंगा विचार मंच के साथ मिलकर अपने परिसरों में 6,000 से अधिक रुद्राक्ष के पौधे लगाए, जिनमें से अधिकांश अब पेड़ बन गए हैं।
उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) ने रुद्राक्ष वाटिका तैयार करने के साथ ही मिश्रित वन विकसित करने के लिए भी भूमि तैयार की है। इसके अलावा, सीमा सड़क संगठन, आईटीबीपी और अन्य संस्थाओं के परिसर में भी रुद्राक्ष वाटिका बनाई गई है।
इस अभियान की शुरुआत गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट ने की, जिन्होंने परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद के सुझाव पर रुद्राक्ष के बगीचे विकसित करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने उत्तरकाशी के जिलाधिकारी और शहर की विभिन्न संस्थाओं से संपर्क कर बंजर भूमि पर पौधरोपण का अनुरोध किया।
आज, इन प्रयासों का परिणाम स्वरूप उत्तरकाशी के कई स्थानों पर रुद्राक्ष के पेड़ और विकसित हो चुके हैं, जो न केवल पर्यावरण को समृद्ध कर रहे हैं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी बेहतर बना रहे हैं। रुद्राक्ष के पेड़ों ने बुलबुल, फिंच और गोल्डन ओरियोल जैसे पक्षियों के लिए अनुकूल आवास तैयार किए हैं। इसके साथ ही, ये पेड़ बड़ी मात्रा में कार्बन सोखने और ऑक्सीजन प्रदान करने में भी सहायक हैं।
यूजेवीएनएल और अन्य संस्थाओं के यह प्रयास सीमांत क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इन संस्थानों के समर्पण और सतत प्रयासों से क्षेत्र का पर्यावरण न केवल हरा-भरा हुआ है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र भी समृद्ध हो रहा है।
उत्तरकाशी के सीमांत क्षेत्रों में सरकारी और निजी संस्थानों के समर्पित प्रयासों ने पर्यावरण संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पौधरोपण के साथ-साथ पौधों के पोषण और संरक्षण पर दिया गया विशेष ध्यान इन प्रयासों को और भी प्रभावी बनाता है। रुद्राक्ष वाटिका और मिश्रित वन जैसी परियोजनाओं ने न केवल क्षेत्र के पर्यावरण को समृद्ध किया है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी बेहतर बनाने में मदद की है। यह पहल एक उदाहरण है कि कैसे सामूहिक प्रयासों से पर्यावरण संरक्षण को सुदृढ़ किया जा सकता है, जिससे भविष्य में भी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
Source- दैनिक जागरण