वैश्विक जल संकट: भविष्य की चुनौतियाँ और हमारी जिम्मेदारी

saurabh pandey
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वैश्विक जल संकटके आंकड़े, पॉट्स डैम इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट और एनजीआरआई के ताजा अध्ययन वैश्विक स्तर पर गहराते जल संकट की ओर इशारा कर रहे हैं, जिससे भारत भी अछूता नहीं है। ऐसे में जल संचयन, भंडारण और पुनर्चक्रण तो जरूरी है ही, लेकिन सबसे जरूरी है कि इस मामले में हर कोई अपनी जिम्मेदारी समझे। यह हमारी जिम्मेदारी है।

वैश्विक जल संकट के आंकड़े

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जल संकट पर जारी आंकड़े एक बार फिर दुनिया को जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के प्रति आगाह करते हैं। साथ ही जल संसाधनों के उपयोग और संरक्षण के तरीकों पर गहन चिंतन की जरूरत को भी रेखांकित करते हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 2025 तक दुनिया की आधी आबादी जल की कमी वाले इलाकों में रह रही होगी और 2030 तक करीब सत्तर करोड़ लोगों को भीषण जल संकट के कारण अपना घर छोड़ना पड़ सकता है। इतना ही नहीं, 2040 तक दुनिया भर में हर चार में से एक बच्चा अत्यधिक जल संकट वाले इलाके में रह रहा होगा।

समस्या की गंभीरता

संयुक्त राष्ट्र के इस अवलोकन से समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है कि पर्याप्त जल संसाधन वाले देशों में भी अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, वितरण प्रणाली की कमियों, प्रदूषण, आंतरिक संघर्ष और जल संसाधनों के खराब प्रबंधन के कारण पानी की कमी हो सकती है। जाहिर है, अगर आज पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में बच्चे सुरक्षित पानी के अधिकार से वंचित हो रहे हैं, तो इसका कारण केवल जलवायु परिवर्तन ही नहीं बल्कि मानवीय कारक भी हैं।

महिलाओं और बच्चों पर प्रभाव

पॉट्स डैम इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, पानी की कमी से सबसे ज्यादा महिलाएं और बच्चे प्रभावित होते हैं, क्योंकि अक्सर पानी इकट्ठा करने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होती है। जैसा कि कई अफ्रीकी और एशियाई देशों में देखा गया है, जब पानी के स्रोत अधिक दूर होते हैं, तो इसे इकट्ठा करने में अधिक समय लगता है, जिसका स्कूलों में बच्चों, खासकर लड़कियों के नामांकन, उपस्थिति और प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में, रिपोर्ट यह कहने में बहुत गंभीरता बरतती है कि अगले ढाई दशकों में जल आपूर्ति पर दबाव के कारण पानी इकट्ठा करने में तीस प्रतिशत अतिरिक्त समय लगाना पड़ेगा।

भारत में जल संकट की जटिलता

रिपोर्ट में भारत में जल संकट के मुद्दे को भी काफी जटिल माना गया है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के एक हालिया अध्ययन को भी चेतावनी के तौर पर लिया जाना चाहिए, जिसके अनुसार 1951 से 2021 के बीच बारिश और सर्दी में कमी के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ी है और इसके परिणामस्वरूप 2002 से 2021 के दौरान उत्तर भारत में भूजल में गंभीर गिरावट आई है।

समाधान की दिशा में कदम

समय-समय पर जारी ये रिपोर्ट और अध्ययन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अगर हम अभी भी नहीं चेते तो भविष्य में स्थिति और गंभीर हो सकती है। ऐसे में सरकार, समाज और व्यक्ति सभी को जल संकट के प्रति संवेदनशील होना होगा। जल संचयन, भंडारण और पुनर्चक्रण के उपायों को अपनाने के साथ-साथ जल संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी और जागरूकता भी बढ़ानी होगी।

आज जल संकट एक गंभीर मुद्दा बन चुका है, जिसका समाधान हमें मिलकर निकालना होगा। संयुक्त राष्ट्र, पॉट्स डैम इंस्टीट्यूट और एनजीआरआई के अध्ययन हमें चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हम अब भी नहीं चेते, तो भविष्य में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। हमें जल संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे ताकि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य मिल सके।

जल संकट के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता ही हमें इस चुनौती से निपटने में मदद कर सकती है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम जल संसाधनों का समुचित उपयोग करें और उन्हें संरक्षित रखें। जल ही जीवन है, और इसे बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।

Source and data – दैनिक जागरण

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