उत्तराखंड ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तर्ज पर सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) को अपनाने का साहसिक कदम उठाया है। यह कदम विकास कार्यों के दौरान प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाने के बदले में उनकी भरपाई के प्रयासों को मापने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। जीईपी से यह पता चलता है कि सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए हैं और वे कितने कारगर हैं।
गर्मी के मौसम में, देश और दुनिया के करीब 86 प्रतिशत लोग भीषण गर्मी का सामना कर रहे हैं, जिसके पीछे समुद्र का बढ़ता तापमान और ग्लोबल वार्मिंग सबसे बड़े कारक हैं। पिछली 22 जुलाई अब तक का सबसे गर्म दिन रहा। मौसम के मिजाज का सही समय पर पता नहीं चल पाता है और अब सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो गया है।
विकास और पर्यावरण की चिंता
कोई भी देश जीडीपी की दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता। जब दुनिया के बड़े देश बेहतर स्थिति में हैं, तो अन्य देश भी विकास में अपना हिस्सा नहीं छोड़ना चाहते। हालांकि, समस्या यह है कि देश और दुनिया की सरकारों ने कभी ऐसा हिसाब नहीं दिया जिससे पता चले कि कितना खोया और कितना जोड़ा। जीईपी जैसे सूचकांक को लाकर हम समझ सकते हैं कि पर्यावरण की रक्षा की दिशा में कितना काम किया गया है।
अमेरिकी अर्थशास्त्री श्री साइमन ने 1935 से 1940 के बीच जीडीपी का विचार दिया और इसे आर्थिक वृद्धि और विकास को मापने का एक बेहतर पैरामीटर माना। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि जीडीपी प्रकृति की स्थिति का संकेतक नहीं हो सकता।
जीईपी का विकास और उत्तराखंड की पहल
2010 में एक विचार आया कि सरकारें जंगल बढ़ाने और हवा, मिट्टी और पानी को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उनका सामूहिक संकेतक नहीं है। 2013 में केदारनाथ त्रासदी ने उत्तराखंड के पर्यावरण को लेकर चर्चाएं शुरू कीं और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने जीईपी को लेकर बैठक की। 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने भी इसका संज्ञान लिया और सरकार ने जीईपी को मंजूरी दे दी।
जीईपी की गणना के लिए विभिन्न शोध संस्थानों से संपर्क किया गया और अंततः हास्को और उनके साथियों ने जीईपी का समीकरण तैयार किया। स्विस शोध पत्रिका इकोलॉजिकल इंडिकेटर्स और देश की प्रमुख शोध पत्रिका डाउन टू अर्थ ने इसे स्थान दिया। उत्तराखंड ने अपने पारिस्थितिकी आंकड़ों का लेखा-जोखा सार्वजनिक मंच पर पेश किया और दुनिया का पहला ऐसा राज्य बन गया जिसने अपने पारिस्थितिकी तंत्र में सकारात्मकता की ओर बढ़ने का संकेत दिया।
उत्तराखंड ने जीईपी के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। राज्य ने यह दिखाया है कि विकास के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा भी संभव है। जीईपी की गणना बहुत बारीकी से की गई है और यह एक सुरक्षित पारिस्थितिकी का संकेत देने में सहायक है। उत्तराखंड का यह प्रयास अन्य राज्यों और देशों के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
Source and data – अमर उजाला