2016-17 से 2022-23 तक प्रमुख फलों की फसलों की घटती पैदावार का किया अध्ययन
ऊंचे क्षेत्रों में नाशपाती, खुबानी, बेर व अखरोट जैसे फलों के उत्पादन में गिरावट
देहरादून, ब्यूरो: गर्म होते मौसम के कारण उत्तराखंड में पिछले सात वर्षों में सेब, नाशपाती, आड़ू, बेर व खुबानी जैसी उच्च गुणवत्ता वाली प्रमुख फलों की फसलों में उत्पादन में भारी गिरावट आई है। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में शोध करने वाली संस्था क्लाइमेट सेल्यूसन की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 2016-17 से 2022-23 तक ऊंचे क्षेत्रों में इन प्रमुख फलों की फसलों में 30 प्रतिशत से अधिक गिरावट दर्ज की गई है। ऊधमसिंह नगर की तुलना में समस्त पहाड़ी फलों के लिए यह गिरावट उतरलखंड में अधिक स्पष्ट है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड में बागवानी उत्पादन के क्षेत्र में भारी गिरावट दर्ज की गई है। 2016-17 और 2022-23 के बीच ऊंचे क्षेत्रों में प्रमुख फलों की खेती में पैदावार के साथ-साथ क्षेत्र में भी कमी आई है।
सेब की पैदावार में 30 प्रतिशत गिरावट
हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में उपजने वाले नाशपाती, खुबानी, बेर और अखरोट जैसे फलों के उत्पादन में सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई है। सेब उत्पादन क्षेत्र में 2016-17 में 25,201.58 हेक्टेयर से घटकर 2022-23 में 11,327.33 हेक्टेयर हो गया है। इसके साथ ही उत्पादन में भी 58 प्रतिशत की गिरावट आई है। वहीं, नाशपाती में 49 और 42 प्रतिशत, खुबानी में 38 और 35 प्रतिशत और बेर में 20 और 24 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है।
उत्तराखंड के तापमान में बढ़ोतरी
उत्तराखंड में औसत तापमान 1970 से 2022 के बीच 0.02 डिग्री सेल्सियस प्रति वर्ष दर से बढ़ा है। इसी अवधि में राज्य में लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि दर्ज की गई। पिछले 20 वर्षों में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सर्दियों के तापमान में भी गिरावट आई है। उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग जिलों में वर्ष 2000 की तुलना में 2020 के दशक में सर्दियों का औसत तापमान 90-100 दिन तक सिकुड़ गया है। सेब, आड़ू, खुबानी, नाशपाती और अखरोट जैसे फलों के विपणन और फसल की गुणवत्ता को ठंडे ताप की आवश्यकता होती है, जो हिमालय के उच्चाचंल क्षेत्रों में उपलब्ध थी।
वर्षा और बर्फ की कमी से फलों के उत्पादन में परेशानी
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पंकज नौटियाल ने बताया कि सेब जैसे फसलों को निश्चित अवधि (दिसंबर-मार्च) के दौरान 1200-1600 घंटों के लिए सात डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान की आवश्यकता होती है, ताकि उनमें फूल और फल ठीक से विकसित हो सके। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में जितनी सर्दी पड़ रही है, उससे पहले की तरह ठंड की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले साल में सामान्य से बहुत अधिक तापमान वृद्धि हुई है। जिससे बर्फबारी में भी कमी आई है। इसका असर सेब, आड़ू और अन्य फलों के उत्पादन पर पड़ा है।
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि उत्तराखंड के उच्च क्षेत्रों में बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन का सीधा असर फलों की पैदावार पर हो रहा है। इससे फलों की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन और गर्म मौसम ने उत्तराखंड के उच्च क्षेत्रों में फलों की पैदावार को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इससे क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के इस संकट का समाधान खोजने और कृषि को नए सिरे से पुनर्संगठित करने की आवश्यकता है, जिससे किसानों को नुकसान से बचाया जा सके।