चम्पावत | देश बड़े हिस्से के लिए जीवनदायिनी गंगा-यमुना के उद्गम वाले प्रदेश उत्तराखंड में 477 जलस्रोत सूखने की कगार पर हैं। जल संस्थान की यह ताजा रिपोर्ट बेहद चिंताजनक है। भीषण गर्मी और कम बारिश से नदियों का पानी घट रहा है।
हल्द्वानी में गौला और रामनगर-अल्मोड़ा में कोसी नदी का जलस्तर गिरने से पेयजल और सिंचाई का संकट खड़ा हो गया है। ज्यादा गर्मी के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से अभी गंगा-यमुना के जलस्तर में कमी नहीं है, लेकिन इन पर दूरगामी असर पड़ेगा। हजारों स्रोत ग्लेशियरों से रिचार्ज होते हैं, भविष्य में उनके सूख जाने का खतरा नजर आने लगा है। नैनीताल झील का जलस्तर चिंताजनक रूप से कम हुआ है। बारिश की कमी और जंगलों में बढ़ती आग के कारण प्रदेश में यह संकट उपजा है। पहाड़ों पर कई जगह लोगों को भारी जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तराखंड में 288 पानी के स्रोत गंभीर संकट में
उत्तराखंड में जो 477 पेयजल स्रोत प्रभावित हुए हैं। इनमें 288 स्रोत ऐसे हैं, जिनका पानी 50 प्रतिशत से अधिक सूख चुका है। इनमें भी 47 स्रोतों में पानी 75 प्रतिशत से भी कम रह गया है। 75 प्रतिशत से अधिक सूख चुके स्रोतों के बचाव को जल्द ठोस उपाय नहीं किए गए तो इनका अस्तित्व खत्म हो सकता है। 189 स्रोत ऐसे हैं, जो 50 प्रतिशत तक प्रभावित हुए हैं।
मौसम विभाग के अनुसार उत्तराखंड में इस बार अप्रैल में सामान्य से 84% और मई में 21% कम बारिश हुई। जून में भी हालात सूखे जैसे हैं। जल संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक इससे प्रदेश में 477 पेयजल स्रोत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। कुमाऊं में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ और गढ़वाल में पौड़ी-चमोली पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है।