भविष्य की ऊर्जा: ग्रीन हाइड्रोजन और जल संकट के समाधान की नई राह

saurabh pandey
6 Min Read

21वीं सदी की ऊर्जा समस्याओं का समाधान खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने कई क्रांतिकारी उपाय पेश किए हैं। इस दिशा में एक नई और आशाजनक तकनीक सामने आई है, जो ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए स्वच्छ जल की समस्या का समाधान करती है। भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे गंदे पानी से हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है। यह खोज विशेष रूप से जल संकट वाले क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

ग्रीन हाइड्रोजन: स्वच्छ ऊर्जा का भविष्य

ग्रीन हाइड्रोजन, जिसे हाइड्रोजन ईंधन के सबसे स्वच्छ रूप के रूप में जाना जाता है, ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। हाइड्रोजन को ऊर्जा के एक स्थायी स्रोत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इसके उत्पादन के लिए स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, जब कई क्षेत्रों में जल संकट गहरा हो गया है, स्वच्छ जल की कमी एक बड़ी चुनौती बन गई है।

नई तकनीक: अशुद्ध जल से हाइड्रोजन उत्पादन

आइसर भोपाल के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डॉ. शंकर चकमा और शोधकर्ता प्राची उपाध्याय ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे गंदे पानी से हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक में यूरिया को अलग करके हाइड्रोजन गैस बनाई जाती है। यह प्रक्रिया न केवल जल की बचत करती है, बल्कि पर्यावरण को भी कम हानिकारक बनाती है।

जल संरक्षण और सस्ती ऊर्जा

इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह स्वच्छ जल की आवश्यकता को कम करती है, जिससे जल संकट का सामना कर रहे क्षेत्रों में ऊर्जा उत्पादन संभव हो सकेगा। इसके अलावा, यूरिया का उपयोग करके हाइड्रोजन उत्पादन न केवल सस्ता है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है। यह विधि जल प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण कदम है।

तकनीक की कार्यप्रणाली

इस तकनीक में यूरिया को नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे सरल अणुओं में तोड़ दिया जाता है, जबकि हाइड्रोजन गैस का उत्पादन किया जाता है। इसके लिए निकेल और आयरन से बने लेयर्ड डबल हाइड्रॉक्साइड इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट का उपयोग किया जाता है, जो प्रभावी और स्थिर होता है। यह तकनीक विशेष रूप से उन स्थानों पर लाभकारी है जहां पानी की कमी है, क्योंकि इसे स्वच्छ पानी की आवश्यकता नहीं होती।

भविष्य की दिशा: अनुसंधान और विकास

आइसर भोपाल ने अक्षय और स्थायी ऊर्जा, जैव ईंधन, और हरित हाइड्रोजन के लिए एक नया केंद्र खोलने की योजना बनाई है। इस प्रस्ताव को सरकार को भेजा गया है और इससे जुड़ी अनुसंधान और विकास गतिविधियाँ भविष्य में ऊर्जा संकट को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

निदेशक की टिप्पणी

आइसर के निदेशक, प्रो. गोबरधन दास ने कहा कि यह नई तकनीक ऊर्जा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उन्होंने कहा कि सरकार और उद्योगों को इस तकनीक को अपनाने और बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए। इसके साथ ही, उन्होंने आम जनता से भी स्वच्छ ऊर्जा के महत्व को समझने और उसका समर्थन करने की अपील की है।

इस नई तकनीक के आने से न केवल हाइड्रोजन के उत्पादन में एक नई क्रांति देखने को मिलेगी, बल्कि यह जल संकट के समाधान में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। ग्रीन हाइड्रोजन के इस नए युग में, भारत और पूरी दुनिया को एक स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मिला है।

आइसर भोपाल के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई नई तकनीक, जो अशुद्ध जल से हाइड्रोजन उत्पादन को संभव बनाती है, ऊर्जा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत है। इस तकनीक की मदद से जल संकट वाले क्षेत्रों में भी स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन संभव होगा, और इसके साथ ही जल की बर्बादी को कम किया जा सकेगा। ग्रीन हाइड्रोजन का यह नवीनतम स्वरूप न केवल ऊर्जा उत्पादन को सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल बनाएगा, बल्कि यह जल प्रदूषण की समस्या को भी हल करने में मददगार साबित होगा।

भविष्य में, इस तकनीक का व्यापक अपनाना और अनुसंधान के लिए निवेश, हमें एक स्थायी और स्वच्छ ऊर्जा भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रदान करेगा। साथ ही, यह वैश्विक जल संकट और ऊर्जा संकट दोनों के समाधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ऐसे में, इसे सरकार और उद्योगों द्वारा समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करना आवश्यक है ताकि इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सके और इसके लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंच सके।

Source- dainik jagran

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *