वायनाड-नीलगिरी पर्वत श्रृंखला के ऊंचे पहाड़ों से एक नदी बहती थी, जो गर्मियों में दबी रहती थी, लेकिन बारिश के मौसम में तेज गति से बहकर पश्चिमी घाट की नदियों में मिल जाती थी। 1876 में अंग्रेजों ने चाय की खेती के लिए यहाँ सीढ़ीनुमा क्यारियां बनाई और कई छोटी जलधाराओं को मिटा दिया। अब, भूस्खलन के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान वेल्लारीमाला पर्वतमाला के नीचे मुंडक्कई और चूरलमाला में हुआ है, जहां भूली हुई नदी पर घर और इमारतें बनी हैं।
आपदा और भूगोल
वेल्लारीमाला रेंज, वायनाड से कोझिकोड तक फैली हुई है। यहाँ की चालियार नदी और उसकी जलवायु विविधता के लिए जिम्मेदार थी, लेकिन हाल में नदी मानव लाशों से पटी हुई थी। भूस्खलन की जड़ में जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप के साथ-साथ एक लुप्त नदी का पुनर्जीवित होना भी शामिल है।
भूस्खलन के कारण और समाधान
वेल्लारीमाला भूस्खलन का कारण दरारों में पानी का जमा होना और मिट्टी की पकड़ ढीली होना था। अत्यधिक बारिश और एक लुप्त नदी के प्रवाह ने इस आपदा को और बढ़ा दिया। चूरलमाला में बांस के पेड़ों के नष्ट होने से मिट्टी का कटाव बढ़ गया। अब पुनर्वास कार्य चल रहा है और भविष्य में भूली हुई नदियों पर बस्तियाँ बसाने से बचने के साथ-साथ बांस के पेड़ों की पुनः स्थापना की जरूरत है।
वायनाड की तबाही की जड़ें भूली हुई नदियों की अनदेखी और मानवीय हस्तक्षेप में गहरी हैं। इन नदियों का पुनर्जीवित होना और बांस के पेड़ों की कमी ने स्थिति को और विकराल बना दिया है। भविष्य में इन समस्याओं से बचने के लिए प्रकृति की समझ और सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता है।
Source – अमर उजाला