उत्तर प्रदेश में जल संकट: अधिक पानी वाली फसलें और भूजल का गिरता स्तर

saurabh pandey
5 Min Read

उत्तर प्रदेश में भूजल की स्थिति लगातार बिगड़ रही है। राज्य देश में सबसे अधिक भूजल दोहन करने वाला क्षेत्र बन चुका है। खेती की मौजूदा पद्धतियां जल संसाधनों पर भारी दबाव डाल रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक, पानी की अत्यधिक खपत करने वाली फसलें, अनियंत्रित बोरवेल और कमजोर नीतियां इस संकट को और गंभीर बना रही हैं।

घटता भूजल स्तर: किसानों के सामने चुनौती

कुछ दशक पहले तक सहारनपुर के ननौता ब्लॉक के भन्हेड़ा खेमचंद गांव में जलस्तर काफी उथला था। लेकिन अब, 68 वर्षीय किसान सोमपाल पुंडीर को हर साल अपने बोरवेल को और गहरा करना पड़ रहा है। वे सोचते हैं, “अगर पानी ऐसे ही नीचे जाता रहा, तो हमें कितनी गहराई तक जाना पड़ेगा?”

1975-76 तक जब सिंचाई के साधन सीमित थे, तब किसान ज्वार, बाजरा, मक्का, और उड़द जैसी कम पानी की जरूरत वाली फसलें उगाते थे। लेकिन पिछले 20-25 वर्षों में ट्यूबवेल और अन्य सिंचाई साधनों के बढ़ने के साथ ही गन्ना, धान और गेहूं जैसी अधिक पानी वाली फसलें उगाने लगे, जिससे जल संकट और गहरा गया।

भूजल दोहन में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर

भारत दुनिया में सबसे अधिक भूजल निकालने वाला देश है। 2023 में, भारत ने लगभग 241 अरब घन मीटर (बीसीएम) भूजल निकाला, जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश ने 46 बीसीएम उपयोग किया।

राज्य लगातार सबसे अधिक भूजल दोहन करने वाले क्षेत्रों में बना हुआ है। 2013 से 2023 के बीच, उत्तर प्रदेश ने कुल 238 बीसीएम पानी निकाला, जो राज्य की घरेलू पानी की जरूरतों को 47 वर्षों तक पूरा करने के लिए पर्याप्त होता।

जल संकट से जूझ रहे आधे जिले

उत्तर प्रदेश के लगभग आधे जिले भूजल का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं। 2023 में उपलब्ध हर 10 में से 7 लीटर भूजल निकाला गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, जहां कुछ जिलों में भूजल दोहन की दर इतनी अधिक है कि प्राकृतिक रूप से इसकी भरपाई संभव नहीं हो पा रही।

बढ़ी हुई निगरानी, लेकिन संकट बरकरार

2022 से पहले भूजल का आकलन लंबे अंतराल पर किया जाता था, लेकिन अब केंद्रीय भूजल बोर्ड और राज्य भूजल विभाग इसे हर साल माप रहे हैं। इस डेटा से यह पता चलता है कि कुल कितना भूजल उपलब्ध है, सिंचाई, औद्योगिक और घरेलू उपयोग के लिए कितना भूजल निकाला जा रहा है, और हर साल पुनर्भरण और खपत में कितना अंतर है।

आधिकारिक रूप से, भूजल दोहन को चार श्रेणियों में बांटा जाता है:

  • अत्यधिक दोहित (Over-exploited): जहां पुनर्भरण से अधिक भूजल निकाला जाता है।
  • गंभीर (Critical): जहां भूजल दोहन 90-100 प्रतिशत के बीच होता है।
  • अर्ध-संकटग्रस्त (Semi-Critical): जहां दोहन 70-90 प्रतिशत के बीच होता है।
  • सुरक्षित (Safe): जहां भूजल दोहन 70 प्रतिशत से कम होता है।

जल संरक्षण की जरूरत

उत्तर प्रदेश भूजल विभाग के पूर्व वैज्ञानिक और भूजल कानून 2018 के मसौदा निर्माता आरएस सिन्हा कहते हैं, “भूजल संसाधन का आकलन सिर्फ अनुमान के आधार पर होता है, जबकि भूजल स्तर में बदलाव की निगरानी जरूरी है।”

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भूजल के अनियंत्रित दोहन को रोकने के लिए ठोस नीति नहीं अपनाई गई, तो आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ेगा। जल प्रबंधन को प्राथमिकता देकर ही भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित जल उपलब्ध कराया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश में भूजल संकट तेजी से गहराता जा रहा है। अनियंत्रित दोहन और अधिक पानी वाली फसलों की खेती ने इस समस्या को और विकट बना दिया है। यदि प्रभावी नीतियों और जल संरक्षण उपायों को तुरंत लागू नहीं किया गया, तो राज्य को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। सतत जल प्रबंधन और वैकल्पिक कृषि पद्धतियों को अपनाकर ही इस स्थिति से निपटा जा सकता है।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *