हाल ही में लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी और रॉयल बोटेनिक गार्डन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध से पता चला है कि फास्फोरस और नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण और जैव विविधता के लिए खतरा बन रहा है। इस शोध के अनुसार, खेती में फास्फोरस और नाइट्रोजन के असंतुलित उपयोग से फूल वाले पौधों की 45 प्रतिशत प्रजातियों को खतरा उत्पन्न हो गया है।
उर्वरकों के असंतुलित अनुपात से नुकसान
शोधकर्ताओं ने गेहूं के पौधों पर किए गए अध्ययनों में पाया कि फसल को 21:1 के अनुपात में नाइट्रोजन और फास्फोरस की आवश्यकता होती है। इस अनुपात से बाहर उपयोग की गई उर्वरक की अतिरिक्त मात्रा बर्बाद हो जाती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और उर्वरक की लागत बढ़ जाती है।
वर्तमान में, दुनिया भर में उर्वरकों के उपयोग में नाइट्रोजन और फास्फोरस का अनुपात 2.1:1 से 4.3:1 के बीच है, जो जरूरत से कहीं अधिक है। इसके परिणामस्वरूप अतिरिक्त उर्वरक मिट्टी और जल निकायों में जमा हो जाता है, जिससे प्रदूषण फैलता है और कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक संसाधनों की बर्बादी होती है।
फास्फोरस की कमी और बढ़ती कीमतें
फास्फोरस, नाइट्रोजन के विपरीत, एक सीमित संसाधन है। बढ़ती जनसंख्या के भोजन की मांग को पूरा करने के लिए इसका संरक्षण महत्वपूर्ण है। शोध में पाया गया कि अगर फास्फोरस के उपयोग को वर्तमान स्तरों से घटाया जाता है, तो इससे न केवल किसानों और पर्यावरण को फायदा होगा, बल्कि पैदावार पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा।
जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
शोध के निष्कर्षों से यह भी पता चलता है कि फास्फोरस के उपयोग को कम करने से फसल उत्पादन पर असर डाले बिना जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। फूल वाले पौधों की 45 प्रतिशत प्रजातियों को खतरा इस बात का संकेत है कि उर्वरकों का असंतुलित और अत्यधिक उपयोग कितनी गंभीर समस्या बन सकता है।
शोध के महत्वपूर्ण निष्कर्ष
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि किसान उर्वरकों के उपयोग में सावधानी बरतें और फास्फोरस और नाइट्रोजन का संतुलित उपयोग करें। इससे न केवल कृषि लागत में कमी आएगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता की रक्षा में भी मदद मिलेगी। यह अध्ययन फूड एंड एनर्जी सिक्योरिटी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
खेती में फास्फोरस और नाइट्रोजन के उर्वरकों का असंतुलित और अत्यधिक उपयोग न केवल पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि जैव विविधता, विशेष रूप से फूलों वाले पौधों की 45 प्रतिशत प्रजातियों के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह स्पष्ट होता है कि 21:1 के सही अनुपात में नाइट्रोजन और फास्फोरस का उपयोग करके न केवल फसल की पैदावार को बनाए रखा जा सकता है, बल्कि पर्यावरण और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार किया जा सकता है। उर्वरकों के संतुलित उपयोग से न केवल पैदावार सुरक्षित रहेगी, बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता की भी सुरक्षा होगी।
Source- down to earth