पूरी दुनिया में स्वच्छ और सुरक्षित जल का संकट गंभीर रूप से उभर रहा है। पीने के पानी की कमी और उससे जुड़ी हिंसाएं दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि पानी अब केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं रह गया है, बल्कि जीवन-मरण का सवाल बन चुका है। जल से जुड़ी हिंसा के आंकड़े भयावह हैं। वर्ष 2023 में ही पानी से जुड़ी हिंसा के 347 मामले सामने आए हैं। भारत जैसे देश में भी इस तरह की घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। वर्ष 2022 में जहां 10 ऐसे मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2023 में यह आंकड़ा 25 तक पहुंच गया। यह 50 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि को दर्शाता है, जो कि एक चिंता का विषय है।
जल संकट की भयावहता और इसके पीछे के कारण
आज जब पूरी दुनिया आधुनिकता की ओर तेजी से बढ़ रही है, तो वहीं जल संकट का यह बढ़ता हुआ आंकड़ा हमारे सामने गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है। जल से जुड़ी हिंसा के मामलों में पाइपलाइनों, कुओं और पानी ट्रीटमेंट प्लांट पर हमले प्रमुख हैं। इसके अलावा, सिंचाई के पानी को लेकर भी संघर्ष होते रहते हैं। दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और उप-सहारा अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में पानी के लिए संघर्ष और भी बढ़ रहे हैं। यहां तक कि इन क्षेत्रों में सूखे की स्थिति ने भी विवादों को भड़काने का काम किया है।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, दुनिया में 4.4 अरब लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यह आंकड़ा पिछले अनुमानों से दोगुना से भी ज्यादा है, जो इस बात का संकेत है कि पानी की कमी आने वाले समय में और भी विकराल रूप ले सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्ट्स भी यही इशारा कर रही हैं कि अगर जल संरक्षण के ठोस प्रयास नहीं किए गए, तो 2050 तक दुनिया की करीब 1.7 से 2.4 अरब शहरी आबादी पानी की कमी से जूझने को मजबूर हो जाएगी।
भारत में जल संकट की स्थिति
भारत भी इस संकट से अछूता नहीं है। देश के कई हिस्सों में जल संकट विकराल रूप धारण कर चुका है। देश के कई क्षेत्रों में लोग फ्लोराइड और आर्सेनिक जैसे हानिकारक तत्वों से दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 1.96 करोड़ घरों में लोग प्रदूषित पानी का उपयोग कर रहे हैं। पानी से जुड़ी बीमारियों के कारण देश को हर साल करीब 42 अरब रुपए का आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जल संरक्षण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में भारत को और भी गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की कमी की स्थिति और भी भयावह हो सकती है। पेयजल संकट के कारण कई स्थानों पर पहले से ही लोगों को हर दिन कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता है।
जलवायु परिवर्तन और जल संकट का आपसी संबंध
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव ने भी पानी की उपलब्धता पर गहरा असर डाला है। ग्लेशियरों का पिघलना, मानसून का अनिश्चित होना और बढ़ते तापमान के कारण नदियों और जलाशयों में पानी की मात्रा तेजी से घट रही है। इस कारण सूखे की समस्या और बढ़ गई है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में यह पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन से पानी की उपलब्धता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। यदि जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो आने वाले 20 वर्षों में जल संकट और भी गंभीर रूप ले सकता है।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का कहना है कि जल संकट से निपटने के लिए एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पानी मानवता के लिए खून के समान महत्वपूर्ण है, और इसका संरक्षण और बर्बादी रोकना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक दुनिया के सभी लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य अभी काफी दूर है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिलकर काम करना होगा और ठोस नीतियों को लागू करना होगा।
समाधान और जल संरक्षण के उपाय
पानी की कमी से निपटने के लिए हमें कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। सबसे पहले, जल संसाधनों का सही प्रबंधन और संरक्षण सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसके लिए हमें बारिश के पानी को संरक्षित करने, वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को बढ़ावा देने, और पानी के उपयोग को सही ढंग से प्रबंधित करने की दिशा में कदम उठाने होंगे। इसके अलावा, जल प्रदूषण को रोकने के लिए भी कड़े नियमों की जरूरत है, ताकि लोग साफ और सुरक्षित पानी का उपयोग कर सकें।
गांवों और शहरों में पानी के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना भी जरूरी है। हमें पानी की बर्बादी को रोकने और इसके सही उपयोग को लेकर लोगों को शिक्षित करना होगा। स्कूलों और कॉलेजों में भी जल संरक्षण पर विशेष पाठ्यक्रम शामिल किए जाने चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी पानी के महत्व को समझे और इसे बचाने की दिशा में काम करे।
जल संकट एक गंभीर वैश्विक मुद्दा है, जिसे हल करने के लिए हमें तात्कालिक और ठोस कदम उठाने की जरूरत है। स्वच्छ और सुरक्षित जल हर इंसान का अधिकार है, और इसे प्राप्त करने के लिए हमें सामूहिक रूप से काम करना होगा। अगर जल संरक्षण के प्रति समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संकट और भी विकराल रूप ले सकता है। जल का संरक्षण और सही उपयोग ही हमें इस संकट से उबार सकता है, और यह सुनिश्चित कर सकता है कि आने वाले समय में हर इंसान को स्वच्छ और सुरक्षित पानी मिल सके।
source- amar ujala