विकास की आड़ में पर्यावरण को नजरअंदाज करना एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है, और दिल्ली के रिज वन क्षेत्र में हो रहे निर्माण इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में पाया है कि इस क्षेत्र में चल रही अधिकांश परियोजनाएं पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन कर रही हैं। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कुल 20 परियोजनाओं में से 15 परियोजनाएं पर्यावरण नियमों को नजरअंदाज कर रही हैं, जिसमें पेड़ों की कटाई और प्रतिपूरक वृक्षारोपण की अनदेखी शामिल है।
पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन
रिज वन क्षेत्र, जिसे दिल्ली का हरा फेफड़ा कहा जाता है, पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। यहां किए जा रहे निर्माण कार्यों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। सीईसी की रिपोर्ट के अनुसार, जिन परियोजनाओं की जांच की गई उनमें से ज्यादातर में पर्यावरणीय प्रावधानों को दरकिनार कर दिया गया है। विशेष रूप से, दिल्ली सरकार, पुलिस, और नगर निगम द्वारा चल रही परियोजनाओं में भारी अनियमितताएं पाई गई हैं।

प्रमुख परियोजनाएं जिनमें हुआ उल्लंघन
रिपोर्ट में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रावास निर्माण से लेकर, मैदान गढ़ी में साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (एसएयू) का निर्माण और ओखला में अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र का निर्माण जैसे प्रोजेक्ट्स का उल्लेख किया गया है, जिनमें नियमों की अनदेखी की गई है। यहां तक कि दिल्ली पुलिस भवन और रक्षा मंत्रालय की इमारत जैसी महत्वपूर्ण सरकारी परियोजनाओं में भी पर्यावरणीय नियमों का पालन नहीं किया गया।
रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें
समिति ने सिफारिश की है कि इन परियोजनाओं को पर्यावरण नियमों के पालन के लिए छह महीने का अतिरिक्त समय दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, सीईसी ने कहा कि यदि इस समयावधि के भीतर संबंधित एजेंसियां पर्यावरणीय शर्तों का पालन नहीं करती हैं, तो उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। समिति ने जोर दिया कि रिज क्षेत्र में होने वाले किसी भी निर्माण कार्य के लिए पेड़ों की कटाई और प्रतिपूरक वृक्षारोपण की निगरानी सुनिश्चित होनी चाहिए।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चिंताएं
पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन कंधारी का कहना है कि रिज क्षेत्र में इस प्रकार के निर्माण कार्यों से पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, “दिल्ली रिज हमारे शहर के पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में नियमों की अनदेखी बेहद चिंताजनक है और इससे भविष्य में बड़े पर्यावरणीय नुकसान हो सकते हैं।”
रिज क्षेत्र का महत्व
दिल्ली का रिज क्षेत्र लगभग 7,777 हेक्टेयर में फैला हुआ है, और इसे चार हिस्सों में बांटा गया है: उत्तरी, दक्षिणी, मध्य और दक्षिणी-मध्य रिज। यह क्षेत्र कई सरकारी एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र में आता है, जिससे यहां के प्रबंधन और संरक्षण में अक्सर जटिलताएं उत्पन्न होती हैं। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत रिज क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य करने से पहले केंद्र और दिल्ली सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य है, लेकिन कई परियोजनाओं में इन शर्तों का पालन नहीं किया गया।
दिल्ली का रिज क्षेत्र न केवल राजधानी की हरित पट्टी है, बल्कि यहां के पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में भी इसकी अहम भूमिका है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि यहां हो रहे निर्माण कार्यों में पर्यावरणीय नियमों का गंभीर उल्लंघन हो रहा है। यदि इन नियमों का पालन नहीं किया गया, तो इसका दूरगामी प्रभाव न केवल पर्यावरण पर, बल्कि दिल्ली के निवासियों के जीवन पर भी पड़ेगा।
समाधान की दिशा में कदम
समिति ने सुझाव दिया है कि भविष्य में किसी भी परियोजना को मंजूरी देने से पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि पहले से जारी शर्तों का सही तरीके से पालन किया गया हो। इसके अलावा, पर्यावरणीय नियमों का सख्ती से पालन कराने के लिए डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम की शुरुआत भी की जानी चाहिए, ताकि हर परियोजना की निगरानी और मूल्यांकन समय पर हो सके।
दिल्ली के रिज वन क्षेत्र में विकास की आड़ में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी गंभीर चिंता का विषय है। पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए इस क्षेत्र का संरक्षण बेहद जरूरी है, लेकिन हालिया रिपोर्ट बताती है कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। इससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति हो सकती है, जिसका असर भविष्य में दिल्ली के निवासियों के जीवन पर पड़ेगा। पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है, और इसके लिए कठोर नियमों का पालन और उनकी नियमित निगरानी जरूरी है। यदि त्वरित सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो इसका प्रभाव न केवल इस क्षेत्र पर, बल्कि समूचे पर्यावरण तंत्र पर पड़ेगा।
Source- amar ujala