गन्ने के छिलके से बने इलेक्ट्रोड: पर्यावरण की दिशा में एक बड़ा कदम

saurabh pandey
5 Min Read

विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में एक नया अध्याय खुलने जा रहा है, जब आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने गन्ने के छिलके से बनाए गए इलेक्ट्रोड का विकास किया है। यह नवाचार इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसर के लिए एक पर्यावरण-हितैषी विकल्प पेश करता है, जो पारंपरिक प्लास्टिक और सिरेमिक सामग्री के विकल्प के रूप में कार्य करेगा।

अनुसंधान की पृष्ठभूमि

गन्ना, जिसे भारत में एक प्रमुख कृषि उत्पाद माना जाता है, का उपयोग इस शोध में मुख्य आधार के रूप में किया गया है। आईआईटी कानपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सिद्धार्थ पांडा और उनकी टीम ने गन्ने के छिलके का इस्तेमाल करके ऐसे इलेक्ट्रोड विकसित किए हैं, जो न केवल कार्यात्मक हैं, बल्कि पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल भी हैं।

प्रोफेसर पांडा के अनुसार, “हमारा लक्ष्य ऐसा इलेक्ट्रोड तैयार करना था जो प्रदूषण को कम करने में मददगार हो। गन्ने के छिलके का उपयोग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

पर्यावरण पर प्रभाव

पारंपरिक इलेक्ट्रोड बनाने में उपयोग होने वाली प्लास्टिक और सिरेमिक सामग्री कई वर्षों तक नष्ट नहीं होती, जिससे पर्यावरणीय प्रदूषण बढ़ता है। इसके विपरीत, गन्ने के छिलके से बने इलेक्ट्रोड यदि खराब हो जाते हैं, तो वे स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाएंगे। इससे न केवल उत्पादन प्रक्रिया को सुरक्षित बनाया जा सकेगा, बल्कि यह एक स्थायी समाधान भी पेश करेगा।

प्रयोगशाला में सफलता

गन्ने के छिलके से बने इन इलेक्ट्रोड का परीक्षण विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक सेंसर के साथ किया गया है। प्रयोगों में यह साबित हुआ है कि ये इलेक्ट्रोड 25 से 55 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर प्रभावी ढंग से कार्य करते हैं। इसे आईआईटी कानपुर के नेशनल फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स सेंटर में विकसित किया गया है, जहाँ इसे औद्योगिक स्तर पर उत्पादन की प्रक्रिया में भी परिवर्तित किया जा सकता है।

उद्योग में संभावनाएँ

गन्ने के छिलके पर आधारित इलेक्ट्रोड के विकास से कई उद्योगों में इसका प्रयोग किया जा सकेगा, जैसे कि मोबाइल फोन, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण। गन्ना भारत में एक प्रचुर मात्रा में उपयुक्त सामग्री है, जिससे इसे बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जा सकता है।

भविष्य

इस शोध के माध्यम से भारत ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है जो न केवल देश की तकनीकी प्रगति में सहायक होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक ठोस कदम है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस नवाचार से न केवल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की कार्यक्षमता बढ़ेगी, बल्कि यह पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी और मजबूत करेगा।

इस तरह के अनुसंधान से यह सिद्ध होता है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सही उपयोग से हम एक स्थायी और स्वस्थ भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। आईआईटी कानपुर के इस प्रयास से पूरी दुनिया को एक नई दिशा मिलेगी, जिससे प्रदूषण में कमी आएगी और सतत विकास को बढ़ावा मिलेगा।

गन्ने के छिलके से बने इलेक्ट्रोड का विकास विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, जो न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि उद्योगों में स्थायी समाधान प्रदान करता है। यह नवाचार पारंपरिक प्लास्टिक और सिरेमिक सामग्री के उपयोग को कम कर, प्रदूषण में कमी लाने की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव प्रस्तुत करता है।

आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की यह पहल दर्शाती है कि कैसे भारतीय अनुसंधान पर्यावरण की रक्षा और तकनीकी उन्नति के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है। गन्ने के छिलके का उपयोग एक सस्ता, सुलभ और बायोडिग्रेडेबल विकल्प प्रदान करता है, जो भविष्य के इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

इस शोध के साथ, भारत ने न केवल इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में एक नई शुरुआत की है, बल्कि यह भी साबित किया है कि सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में वैज्ञानिक नवाचार कितने प्रभावी हो सकते हैं। आने वाले समय में, इस प्रकार के अनुसंधान और विकास हमारे समाज को एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण की ओर ले जाने में मदद करेंगे।

Source- dainik jagran

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *