मानसून की वापसी: फसलों पर असर और आगामी रबी सीजन की चुनौतियाँ

saurabh pandey
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भारत में मानसून की वापसी ने किसानों के लिए मिश्रित परिणाम लेकर आई है। जहाँ एक ओर मानसून की अधिक बारिश ने देश के कई हिस्सों में पानी की भरपूर आपूर्ति की है, वहीं दूसरी ओर इसकी अनियमितता ने फसलों को नुकसान पहुंचाने का काम भी किया है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्यों में पकने के लिए तैयार धान और अन्य खरीफ फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अत्यधिक नमी और बारिश के कारण खेतों में खड़ी फसलें गिर गई हैं, जिससे उनकी गुणवत्ता और उत्पादन पर असर पड़ेगा।

खरीफ फसलों पर असर

मानसून का असर विशेष रूप से धान, मक्का, कपास, सोयाबीन और दलहन जैसी खरीफ फसलों पर पड़ा है। इन फसलों की रोपाई जून और जुलाई में की जाती है, और ये सितंबर-अक्टूबर तक पकने लगती हैं। जब फसल कटाई के नजदीक होती है, तभी भारी बारिश का आना किसानों के लिए मुसीबत बन जाता है। इस साल, पंजाब और हरियाणा के कई इलाकों में धान की फसलें अत्यधिक नमी के कारण खेतों में गिर गईं, जिससे कटाई और बिक्री में भी समस्या आने की आशंका है।

सोयाबीन और अरहर जैसी दलहन फसलों को भी नुकसान झेलना पड़ा है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश से सोयाबीन की फसलें प्रभावित हो रही हैं। अरहर और उड़द जैसे दलहन भी इससे अछूते नहीं रहे, जिनकी बुआई के समय हुई बारिश का लाभ अब भारी बारिश में डूब गया है।

रबी सीजन में देरी की आशंका

खरीफ फसलों के नुकसान के अलावा, आगामी रबी सीजन की तैयारी भी मानसून की अनियमितता के कारण प्रभावित हो रही है। यदि बारिश का सिलसिला अक्टूबर के मध्य तक जारी रहा, तो गेहूं, सरसों, चना और मसूर जैसी रबी फसलों की बुआई में देरी हो सकती है। खेतों में पानी भर जाने के कारण मिट्टी तैयार करने में कठिनाई होगी, जिससे किसान देर से बुआई करने पर मजबूर होंगे।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, मानसून की वापसी पश्चिमी भारत से शुरू हो चुकी है, लेकिन उत्तर भारत के कई हिस्सों में अभी भी बारिश हो रही है। राजस्थान और गुजरात जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भारी बारिश से राहत तो मिली है, लेकिन उत्तर भारत में इसका विपरीत असर देखने को मिल रहा है।

अनियमित बारिश का कृषि पर दीर्घकालिक प्रभाव

इस साल मानसून की बारिश सामान्य से अधिक रही है, लेकिन इसका वितरण असमान रहा है। बिहार, छत्तीसगढ़, और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में कम बारिश हुई, जबकि राजस्थान, गुजरात, और दक्षिण भारत के कई इलाकों में सामान्य से अधिक बारिश हुई। इसका सीधा असर कृषि उत्पादन और किसानों की आय पर पड़ा है।

मानसून की अनियमितता ने यह साफ कर दिया है कि कृषि पर मौसम का गहरा प्रभाव है। सरकार और किसान संगठनों को अब इस दिशा में दीर्घकालिक उपाय तलाशने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहे हैं, और इससे फसलों की उत्पादन क्षमता प्रभावित हो रही है।

क्या कहता है भविष्य?

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में किसानों को जलवायु अनुकूल खेती के तरीकों को अपनाने की जरूरत होगी। साथ ही, सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि किसानों को मानसून की अनियमितता से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। मानसून की वापसी के साथ अब रबी सीजन की तैयारी का समय आ गया है। किसानों को चाहिए कि वे बुआई के समय को ध्यान में रखते हुए अपने खेतों की तैयारी करें और मौसम की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए नए तकनीकी उपायों का इस्तेमाल करें।

इस साल मानसून ने जहाँ कुछ क्षेत्रों में फसलों के लिए भरपूर पानी उपलब्ध कराया, वहीं कई क्षेत्रों में इसका विपरीत असर पड़ा। अब किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, आगामी रबी सीजन की बुआई को समय पर पूरा करना और खरीफ फसलों से हुए नुकसान की भरपाई करना। सरकार और किसान संगठनों को साथ मिलकर इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है, ताकि आने वाले समय में मानसून की अनियमितता से कृषि क्षेत्र को कम से कम नुकसान हो।

Source- dainik jagran

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