प्राकृतिक तंत्र द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण मानव गतिविधियों से उत्सर्जित कार्बन को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये तंत्र कमजोर पड़ते जा रहे हैं, जिससे न केवल पर्यावरणीय स्थिरता बल्कि मानव भविष्य पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।
हाल ही में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि धरती, जंगलों और समुद्रों ने 2023 में उम्मीद से कम कार्बन अवशोषित किया। यह न केवल ग्लोबल वॉर्मिंग को तेज़ कर सकता है, बल्कि जलवायु आपदा की संभावना को और बढ़ा सकता है। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के निदेशक जोहान रॉकस्ट्रॉम का कहना है कि, “हम पारिस्थितिकी प्रणालियों में दरारें देख रहे हैं, जो हमारे लिए बहुत चिंता का विषय है।”
कार्बन अवशोषण में बाधाएं: धरती के संकटग्रस्त तंत्र
प्राकृतिक कार्बन सिंक—जैसे जंगल, मिट्टी, महासागर और घास के मैदान—हर साल अरबों टन कार्बन को अवशोषित करते हैं। ये तंत्र मानव गतिविधियों से उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन के लगभग आधे हिस्से को संभालते हैं। लेकिन बढ़ते तापमान के कारण इनकी कार्बन अवशोषण क्षमता तेजी से घट रही है।
समुद्र और महासागर भी संकट में
महासागर प्राकृतिक रूप से वायुमंडलीय कार्बन को अवशोषित करते हैं, लेकिन अब यह क्षमता भी घट रही है। आर्कटिक की बर्फ और ग्रीनलैंड के ग्लेशियर अनुमान से तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र की धाराएं प्रभावित हो रही हैं। इससे गुल्फ स्ट्रीम जैसी महत्वपूर्ण महासागरीय धाराओं की गति धीमी हो रही है। ये धाराएं कार्बन अवशोषण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
समुद्री जीवन भी इस संकट से अछूता नहीं है। ज़ूप्लैंकटन जैसे सूक्ष्म जीव जो समुद्र की गहराई में रहकर कार्बन का संग्रहण करते हैं, अब उनकी गतिविधियों में भी बाधा उत्पन्न हो रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि समुद्री बर्फ के पिघलने से इन जीवों को अत्यधिक धूप मिल रही है, जिससे उनका प्रवास और गहराई में लौटने की प्रक्रिया बाधित हो रही है। इससे कार्बन तलछट में कमी आ रही है, जो महासागरों के कार्बन स्टॉक को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।
धरती का गर्म होना कैसे प्रभावित कर रहा है कार्बन अवशोषण?
गर्म होते मौसम से मिट्टी की कार्बन अवशोषण क्षमता भी घट रही है। मिट्टी में मौजूद जीवाणु और जैविक तत्व सामान्य परिस्थितियों में कार्बन को सोखते हैं, लेकिन तापमान में वृद्धि के कारण ये प्रक्रियाएं धीमी हो गई हैं।
जंगल और पौधे, जो वायुमंडलीय कार्बन को अवशोषित करने का एक बड़ा माध्यम हैं, भी गर्मी और सूखे की मार झेल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, 2023 में जंगलों की कार्बन अवशोषण दर में भारी गिरावट देखी गई। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में मानव निर्मित उत्सर्जन को संभाल पाना कठिन हो जाएगा।
जलवायु मॉडल में सुधार की आवश्यकता
विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान जलवायु मॉडल में इन बदलती परिस्थितियों का पर्याप्त रूप से आकलन नहीं किया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के प्रोफेसर एंड्रयू वॉटसन का कहना है, “सबसे बड़ी चिंता यह है कि कार्बन अवशोषण में कमी के इन प्रभावों को जलवायु परिवर्तन के मॉडल में अभी तक समुचित रूप से शामिल नहीं किया गया है। हमें इन चुनौतियों को ध्यान में रखकर नए मॉडल तैयार करने होंगे ताकि हम शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त कर सकें।”
क्या है आगे का रास्ता?
प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के बिना शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना असंभव है। पेड़-पौधों, मिट्टी और महासागरों की क्षमताओं को बनाए रखने के लिए तत्काल संरक्षण प्रयासों की जरूरत है। यदि हम इन तंत्रों को संरक्षित नहीं कर पाए, तो मानव निर्मित उत्सर्जन को नियंत्रित करना कठिन हो जाएगा। 2023 में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का आंकड़ा 37.4 बिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है, जो एक नया रिकॉर्ड हो सकता है।
वर्तमान स्थिति में, केवल तकनीकी समाधान कारगर नहीं होंगे। हमें पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना होगा। वृक्षारोपण, कार्बन कैप्चर तकनीक, और समुद्री जीवन की रक्षा जैसे कदम उठाना बेहद जरूरी है।
समय की मांग-प्रकृति के साथ सामंजस्य
ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्राकृतिक कार्बन सिंक कमजोर हो रहे हैं, जिससे कार्बन संतुलन बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। यदि इन तंत्रों को संरक्षित करने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में जलवायु संकट और गहरा सकता है। हमें न केवल उत्सर्जन कम करने पर ध्यान देना होगा, बल्कि प्राकृतिक प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित करने के उपाय भी करने होंगे। पृथ्वी की रक्षा के बिना, शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना असंभव होगा।