बदलते मानसून के मिजाज से कहीं बाढ़, कहीं सूखा, किसान परेशान

saurabh pandey
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इस साल मानसून ने देश के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न रूप अपनाए हैं, जिससे किसान और आम जनता दोनों ही प्रभावित हुए हैं। भारतीय मौसम विभाग ने इस साल मानसून में सामान्य से छह फीसदी ज्यादा बारिश का अनुमान जारी किया था, जो सतही तौर पर सामान्य नजर आता है। लेकिन जब हम इन आंकड़ों पर गहराई से विचार करते हैं, तो स्थिति सामान्य से बिल्कुल अलग दिखाई देती है।

बारिश के पैटर्न में बदलाव और जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न लगातार बदल रहा है, जिसका असर न सिर्फ कृषि बल्कि बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के कारण देश की अर्थव्यवस्था, लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर भी पड़ रहा है। मौसम विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, इस साल 1 जून से 21 जुलाई तक मानसून का प्रभाव रहेगा। देश के 244 जिलों में सामान्य बारिश हुई है, जबकि 241 जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है।

क्षेत्रीय प्रभाव और चिंताजनक स्थिति

उत्तर प्रदेश के पांच जिलों में अत्यधिक बारिश हुई है, जबकि नौ जिलों में सामान्य से अधिक, 27 जिलों में सामान्य, 27 जिलों में सामान्य से कम और छह जिलों में गंभीर सूखा पड़ा है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में सामान्य से 49 फीसदी कम बारिश हुई है, जबकि पंजाब और जम्मू-कश्मीर में क्रमशः 46 फीसदी और 38 फीसदी की भारी कमी है। केरल के अलावा अन्य दक्षिणी राज्यों में ज्यादातर सामान्य से अधिक या सामान्य बारिश हुई है।

लंबी अवधि का विश्लेषण और इसके निष्कर्ष

मौसम विभाग द्वारा 1989 से 2018 तक दक्षिण-पश्चिम मानसून के आंकड़ों के आधार पर किए गए विश्लेषण से पता चला है कि पिछले 30 वर्षों के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में वर्षा के वितरण में भारी असमानता देखी गई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड में मानसून की वर्षा में उल्लेखनीय कमी आई है।

भारी वर्षा और सूखे की घटनाएं

सौराष्ट्र और कच्छ, राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, आंध्र प्रदेश के उत्तरी भाग और दक्षिण-पश्चिम ओडिशा के आसपास के क्षेत्रों में भारी वर्षा वाले दिनों की आवृत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इसके विपरीत, अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में वार्षिक वर्षा में कमी आई है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हाल ही में ‘भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आकलन’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जो देश में जलवायु चरम सीमाओं के बारे में जानकारी प्रदान करती है। इसमें कहा गया है कि 1901-2018 के दौरान भारत में सतही वायु तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जिससे वायुमंडलीय नमी की मात्रा भी बढ़ी है। 1951-2015 के दौरान हिंद महासागर की सतह के तापमान में भी लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।

इस बदलते पैटर्न के प्रतिकूल प्रभावों को संबोधित करने के लिए जलवायु-लचीली कृषि, टिकाऊ जल प्रबंधन प्रथाओं, बाढ़ के जोखिमों को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास और बदलती जलवायु स्थितियों के अनुकूलन को बढ़ावा देने वाली नीतियों की आवश्यकता है।

बारिश के बदलते मिजाज से उत्पन्न होने वाले संकटों का प्रभाव न केवल कृषि और अर्थव्यवस्था पर है, बल्कि आम जनता के जीवन पर भी गहरा असर डालता है। अतः, समय रहते उचित कदम उठाना आवश्यक है ताकि इन परिवर्तनों के साथ समायोजन किया जा सके और उनके नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।

source and data- अमर उजाला

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