धरती की यह चुनौती पूर्ण अवस्था’ बनाम ‘वोटिंग और व्यवस्था’ –

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हमारी धरती वर्तमान समय में एक चुनौतीपूर्ण और संकटपूर्ण अवस्था से गुजर रही है। जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जैव विविधता का नाश और अनेक अन्य समस्याएँ मानव जाति के अस्तित्व को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं, इसके बावजूद हम अब भी केवल मानव के हितों और उसकी तात्कालिक आवश्यकताओं पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जबकि धरती और इसके अन्य जीव-जंतु लगातार संकट में हैं। इस संदर्भ में वोटिंग और व्यवस्था का महत्व और भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। धरती पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। वैश्विक तापमान एवं ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि, समुद्र स्तर का बढ़ना, अत्यधिक सूखा, बाढ़, और अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। ये परिवर्तन न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि मानव जीवन, कृषि, पशुपालन और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल रहे हैं। इस गंभीर परिस्थिति में वोटिंग का महत्व बढ़ जाता है। नागरिकों को समझना होगा कि उनकी वोट केवल सरकार बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नीतियों और कार्यवाहियों को दिशा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्यवाही, और सतत् विकास को प्राथमिकता देने वाली सरकार और प्रतिनिधि चुनना आवश्यक हो गया है। वोटिंग के माध्यम से हम ऐसी सरकारें चुन सकते हैं जो पर्यावरणीय समस्याओं को गंभीरता से लें और इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं। यह केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह हमारे और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने का एक साधन है। वोटिंग के अलावा, व्यवस्थागत बदलाव और नीतियों का निर्माण भी आवश्यक है। सरकारों को चाहिए कि वे: –

धरती की यह चुनौती पूर्ण अवस्था’ बनाम ‘वोटिंग और व्यवस्था’ –

हमारी धरती वर्तमान समय में एक चुनौतीपूर्ण और संकटपूर्ण अवस्था से गुजर रही है। जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जैव विविधता का नाश और अनेक अन्य समस्याएँ मानव जाति के अस्तित्व को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं, इसके बावजूद हम अब भी केवल मानव के हितों और उसकी तात्कालिक आवश्यकताओं पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जबकि धरती और इसके अन्य जीव-जंतु लगातार संकट में हैं। इस संदर्भ में वोटिंग और व्यवस्था का महत्व और भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। धरती पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। वैश्विक तापमान एवं ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि, समुद्र स्तर का बढ़ना, अत्यधिक सूखा, बाढ़, और अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। ये परिवर्तन न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि मानव जीवन, कृषि, पशुपालन और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल रहे हैं। इस गंभीर परिस्थिति में वोटिंग का महत्व बढ़ जाता है। नागरिकों को समझना होगा कि उनकी वोट केवल सरकार बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नीतियों और कार्यवाहियों को दिशा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्यवाही, और सतत विकास को प्राथमिकता देने वाली सरकार और प्रतिनिधि चुनना आवश्यक हो गया है। वोटिंग के माध्यम से हम ऐसी सरकारें चुन सकते हैं जो पर्यावरणीय समस्याओं को गंभीरता से लें और इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं। यह केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह हमारे और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने का एक साधन है। वोटिंग के अलावा, व्यवस्थागत बदलाव और नीतियों का निर्माण भी आवश्यक है। सरकारों को चाहिए कि वे: –

  1. सतत विकास की नीतियाँ अपनाएं, जो पर्यावरण और आर्थिक विकास दोनों को संतुलित रूप से आगे बढ़ाएं।
  2. पुनरुत्थानशील ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग बढ़ाएं और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करें।
  3. वन संरक्षण और जैव विविधता के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाएं।
  4. शहरी नियोजन और निर्माण में हरित तकनीकों और टिकाऊ सामग्री का प्रयोग बढ़ाएं।
  5. जल प्रबंधन और स्वच्छ जल स्रोतों के संरक्षण के लिए नीतियाँ बनाएं।
  6. कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण की योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करें।

मानव केंद्रित दृष्टिकोण का परित्याग –

हमारे समाज में अभी भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो केवल मानव केंद्रित दृष्टिकोण अपनाता है। यह दृष्टिकोण बहुत ही सीमित और स्वार्थपूर्ण है। यह समझना आवश्यक है कि धरती पर मानव जीवन तभी तक संभव है जब तक इसकी पर्यावरणीय प्रणाली संतुलित और स्वस्थ है।
धरती पर अन्य जीव-जंतु, वनस्पतियाँ और प्राकृतिक संसाधन सभी का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। उनके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः, मानव केंद्रित दृष्टिकोण को छोड़कर एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
धरती की वर्तमान चुनौतीपूर्ण अवस्था हमें एक चेतावनी दे रही है कि अगर हमने अभी भी सचेत होकर सही कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में स्थितियाँ और भी गंभीर हो सकती हैं। वोटिंग और व्यवस्था में सुधार लाकर, और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देकर हम इस संकट से उबर सकते हैं। यह समय केवल मानव के बारे में सोचने का नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण पृथ्वी और इसके सभी निवासियों के बारे में सोचने का है। यह जिम्मेदारी हम सभी की है, और हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

छोटे बच्चों के लिए पर्यावरणीय शिक्षा एक अनिवार्य पहल –

याद रखें, अभी नहीं तो कभी नहीं। हम जिन पर्यावरणीय समस्याओं से घिरे हैं, उनसे निकलने का आश्वासन रखना मूर्खतापूर्ण है। कोई सरकार या खुद प्रकृति इन्हें ठीक कर देगी, यह सोच भी गलत है। इसके बजाय, हमें बच्चों के बौद्धिक विकास को ऐसी खुराक देनी चाहिए, जिससे वे प्रकृति के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनें। प्ले स्कूल से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए सप्ताह में दो बार ‘फॉरेस्ट्री और एग्रीकल्चर वर्कशॉप्स’ आयोजित करनी चाहिए। साथ ही, वायु, जल, धरती, आकाश और आग के महत्व, पर्यावरणीय क्षरण, मानव सभ्यता का इतिहास, संस्कृति, और मशीनीकृत विकास की जानकारी दी जानी चाहिए। कला, संगीत और नाटक के माध्यम से स्पष्ट सोच और कलात्मक दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए। अगर हम यह सब करें, तो शायद आने वाला समय प्रकृति केंद्रित जीवन को फलता-फूलता देख सकेगा।

अतुल पाण्डेय (संयोजक)
atul@prakritiwad.com
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