बिहार: सरकारी प्रयासों के बावजूद ‘दाल के कटोरे’ में दाल की खेती पर संकट

saurabh pandey
7 Min Read

बिहार का मोकामा टाल क्षेत्र, जिसे ‘दाल का कटोरा’ कहा जाता है, पिछले कुछ वर्षों से गंभीर संकट का सामना कर रहा है। यह क्षेत्र जो करीब एक लाख हेक्टेयर में फैला है, बिहार के पटना, नालंदा, लखीसराय और शेखपुरा जिलों में स्थित है, यहां पर मसूर, चना, मटर, राई जैसी दालों की खेती होती है। हालांकि, जलजमाव और पर्यावरणीय समस्याओं के कारण यहां की खेती लगातार प्रभावित हो रही है, और इस क्षेत्र को दाल के उत्पादन में कमी का सामना करना पड़ रहा है।

संकट के कारण

मोकामा टाल क्षेत्र गंगा नदी के पास स्थित है, जहां प्रत्येक साल बारिश के मौसम में आठ से दस फीट तक पानी जमा हो जाता है, और यह पानी बाद में गंगा नदी में समाहित हो जाता है। इस प्रक्रिया से क्षेत्र में जलजमाव की समस्या उत्पन्न होती है, जिससे किसानों के लिए खेतों में फसल उगाना कठिन हो जाता है। विशेषकर दलहनी फसलों की बुआई का समय, जो आमतौर पर 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक होता है, जलजमाव के कारण अटक जाता है। इससे बुआई समय पर नहीं हो पाती और हजारों एकड़ खेत परती रह जाते हैं।

बिहार विधानसभा में इस संकट पर चर्चा करते हुए तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने राज्य सरकार से इस समस्या का समाधान जल्दी निकालने की अपील की थी, लेकिन हालात में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है।

किसानों की स्थिति

किसानों का कहना है कि जलजमाव के कारण उनकी स्थिति बेहद खराब हो गई है। बंटी पाठक, जो मोकामा के निवासी और लेखक हैं, बताते हैं कि पहले यह क्षेत्र उपजाऊ था, और यहां सिंचाई की आवश्यकता भी नहीं होती थी, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। बिचौलियों और ठेकेदारों के हस्तक्षेप के कारण नाला निर्माण और जलनिकासी की समस्या बढ़ गई है।

किसान प्रणव शेखर शाही का कहना है कि सरकारी योजनाओं का फायदा सही तरीके से नहीं मिल रहा है। गंगा नदी के बढ़ते जलस्तर और जलनिकासी के पुराने रास्तों की बंदी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। खासकर रोड निर्माण कार्यों ने जलनिकासी के पारंपरिक रास्तों को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे समस्या और बढ़ी है।

इस साल की स्थिति

इस साल मोकामा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में 60 से 70 प्रतिशत इलाके से बाढ़ का पानी निकल चुका है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों जैसे मरांची टाल में अभी भी पानी जमा हुआ है, और यहां के किसान अगले कुछ हफ्तों में बुआई की उम्मीद कर रहे हैं। स्थानीय किसान राहुल शर्मा का कहना है कि, “इस साल बेमौसम बारिश ने बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी है, और अब दाल की बुआई का समय समाप्त हो रहा है।”

वहीं, मोकामा के एक अन्य किसान ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, “अगर हालात जल्दी नहीं सुधरे तो इस बार इलाके के कुछ इलाकों में दाल की बुआई नहीं हो पाएगी, और इससे किसानों की आमदनी पर सीधा असर पड़ेगा।”

सरकारी प्रयासों की कमी

वहीं, सरकारी प्रयासों को लेकर किसान नेताओं का कहना है कि टाल क्षेत्र के विकास के लिए सरकार ने बजट तो आवंटित किया है, लेकिन उस धन का सही उपयोग नहीं हो रहा है। जलनिकासी के उपायों के लिए जो योजनाएं बनती हैं, वे धरातल पर सफल नहीं हो पा रही हैं। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जलनिकासी की उचित व्यवस्था नहीं की जाती, तो यह संकट और बढ़ सकता है।

भविष्य में क्या समाधान?

यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और जलजमाव से जूझ रहा है, और ऐसे में यहां के किसानों के लिए जरूरी है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन जलनिकासी की दिशा में ठोस कदम उठाए। एक मजबूत जल निकासी व्यवस्था और सिंचाई प्रबंधन, और साथ ही जलवायु अनुकूल कृषि नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है, ताकि इस क्षेत्र में खेती की स्थिति सुधारी जा सके।

यदि यह समस्या जल्दी हल नहीं होती, तो ‘दाल का कटोरा’ के रूप में प्रसिद्ध मोकामा टाल क्षेत्र पूरी तरह से दाल उत्पादन से बाहर हो सकता है, जिससे न केवल स्थानीय किसानों की आय प्रभावित होगी, बल्कि पूरे बिहार की कृषि व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।

निष्कर्ष: मोकामा टाल क्षेत्र के किसानों को जलजमाव और खराब जलनिकासी के कारण दाल की खेती में भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को चाहिए कि वह इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए और जलनिकासी की व्यवस्था को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करे, ताकि यहां के किसान फिर से दाल की खेती में सफलता हासिल कर सकें।

बिहार के मोकामा टाल क्षेत्र में जलजमाव और जलनिकासी की समस्याएं किसानों के लिए गंभीर संकट का कारण बन चुकी हैं। इन समस्याओं ने दाल की खेती को प्रभावित किया है, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। किसानों का कहना है कि सरकारी प्रयासों के बावजूद समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है, और जलनिकासी के उपायों में कई बाधाएं हैं।

जलवायु परिवर्तन, बेमौसम बारिश और जलजमाव के कारण इस क्षेत्र में फसल उत्पादन में गिरावट आई है, खासकर दलहनी फसलों की बुआई समय से नहीं हो पा रही है। अगर तत्काल कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो मोकामा टाल क्षेत्र ‘दाल के कटोरे’ के रूप में अपनी पहचान खो सकता है, जिससे किसानों की आमदनी प्रभावित होगी और बिहार की कृषि व्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

इसलिए, सरकार और स्थानीय प्रशासन को जलनिकासी व्यवस्था सुधारने, सिंचाई प्रबंधन में सुधार करने, और जलवायु अनुकूल कृषि नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है, ताकि मोकामा क्षेत्र में दाल की खेती फिर से उन्नति कर सके और किसानों की स्थिति बेहतर हो सके।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *