बीसलपुर बांध के समीप बसे गांव राजमहल, बोटूंदा, कुरासियां, भगवानपुरा, माताजी का रावता, नयागांव, सतवाड़ा, बनेड़िया, कंवरावास, देवीखेड़ा, ककोडिया, सीतारामपुरा, कुशालपुरा, लाखोलाई, नेगड़िया, नयागांव आदि के लिए बीसलपुर बांध वरदान नहीं बल्कि अभिशाप बन गया है। ढाई हजार की आबादी वाली बोटूंदा पंचायत के जगदीश शर्मा और मोतीलाल का कहना है कि बीसलपुर बांध उनके लिए “दीया तले अंधेरा” वाली कहावत साबित हो रहा है। बांध बनने से पहले कुओं में 20 से 25 फीट तक ही पानी था, जो अब 40-50 फीट तक चला गया है। बनास में बजरी होने और पानी की धार बारह मासी चलने से कुओं से पहले 24 घंटे सिंचाई होती थी। अब मोटर 2 घंटे भी नहीं चलती। बांध बनने के साथ जमीन में पानी की धार भी बंद हो गई है, जिससे कुओं के पानी में फ्लोराइड बढ़ रहा है।
टोंक: बीसलपुर बांध जहां न सिर्फ टोंक जिले बल्कि राज्य की राजधानी जयपुर, अजमेर और दौसा सहित राज्य के बड़े हिस्से की प्यास बुझा रहा है, वहीं इसके बहाव क्षेत्र की 10 किमी परिधि में बनास नदी किनारे बसे लगभग 16 गांवों के लोग भीषण गर्मी में भी बांध के पानी के लिए कई किलोमीटर दूर से पानी लाने को विवश हैं।

वहीं, 10 हजार की आबादी वाला राजमहल भी बांध से महज 4 किमी दूर है, लेकिन यहां बांध से जलापूर्ति के प्वॉइंट नहीं हैं। नदी सूखी है, पेटे में लगे दो ट्यूबवेल से कस्बे में 2 दिन में एक बार पानी मिलता है। इसमें फ्लोराइड होने से ग्रामीण 300 रुपए में टैंकर मंगवाते हैं। इतना ही नहीं, बीसलपुर बांध से डेढ़ किमी दूर तीन हजार की आबादी वाले माताजी का रावता के पंच प्रहलाद और रामसिंह अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि ग्रामीण डेढ़ किमी दूर राजमहल के फिल्टर प्लांट से पानी लाते हैं। बांध निर्माण में हमारी घर-जमीन डूब गई लेकिन हमें ही पानी नहीं मिल रहा।
भू-जल वैज्ञानिक लक्ष्मण मीणा ने बताया कि बीसलपुर बांध के आसपास के क्षेत्र में ग्रेनाइट और शिष्ट प्रकार की चट्टानों की अधिकता होने से इस क्षेत्र में रिचार्ज बहुत कम होता है। साथ ही धरातल से 7 से 12 मीटर की गहराई में ये चट्टानें ज्यादा होने से पेयजल की समस्या रहती है। इधर, बांध परियोजना के अधीक्षण अभियंता बीएस सागर का कहना है कि भूजल स्तर और पानी की गुणवत्ता को लेकर किए जा रहे प्रयासों में सफलता मिली है।
ग्रामीणों की इस विकट स्थिति से निपटने के लिए सरकार और प्रशासन को शीघ्र ही ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि इन गांवों के लोग भी अपने क्षेत्र में उपलब्ध जल संसाधनों का समुचित लाभ उठा सकें।
सौरभ पाण्डेय
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