पंजाब, जिसे भारत का अन्न भंडार कहा जाता है, आज एक बड़े संकट का सामना कर रहा है। धान की खेती ने राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है, लेकिन इसकी वजह से राज्य का भूजल स्तर खतरनाक रूप से नीचे गिर रहा है। भूजल संरक्षण के लिए सरकार अब सख्त कदम उठाने की तैयारी में है। इस दिशा में धान की खेती पर रोक लगाने की योजना बनाई जा रही है, खासकर उन ब्लॉकों में जो सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
भूजल का तेजी से गिरता स्तर: एक चेतावनी
पंजाब के जल संसाधनों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। 2000 में राज्य का भूजल स्तर लगभग 110 फीट पर था, लेकिन अब यह 450 फीट से भी नीचे पहुंच चुका है। विशेषज्ञों की माने तो अगर यही स्थिति जारी रही, तो 2039 तक भूजल स्तर 1000 फीट तक गिर सकता है। पंजाब के 143 ब्लॉकों में से 117 ब्लॉक पहले ही डार्क जोन में हैं, जबकि 15 ब्लॉक क्रिटिकल डार्क जोन में जा चुके हैं। यह स्थिति पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य के लिए गंभीर चुनौती पेश कर रही है।
कृषि नीति में बदलाव: धान की खेती पर रोक
गिरते जलस्तर और पराली जलाने की समस्या को ध्यान में रखते हुए पंजाब सरकार ने एक नई कृषि नीति का मसौदा तैयार किया है। इस मसौदे में सुझाव दिया गया है कि सबसे अधिक संकटग्रस्त 15 ब्लॉकों में धान की खेती पर रोक लगाई जाए। धान की खेती को रोकने से भूजल स्तर को बचाया जा सकेगा और पराली जलाने की समस्या से भी निपटा जा सकेगा, जिससे वायु प्रदूषण कम होगा।
पराली जलाने की समस्या और सरकार की चुनौती
धान की कटाई के बाद पराली जलाने से उत्पन्न धुएं से हर साल वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, इस साल पराली जलाने के मामले 15 सितंबर से शुरू हो चुके हैं, और पहले ही दिन 11 मामले दर्ज किए गए। सरकार की योजना है कि धान के रकबे को कम कर पराली जलाने के मामलों में कमी लाई जाए। लेकिन यह काम आसान नहीं होगा, क्योंकि किसानों के लिए धान की खेती से हटकर वैकल्पिक फसलों की ओर मुड़ना एक बड़ी चुनौती है।
किसानों के समर्थन की आवश्यकता
सरकार की ओर से प्रस्तावित नई कृषि नीति को लेकर किसान संगठनों की राय भी महत्वपूर्ण होगी। यदि धान की खेती पर रोक लगाई जाती है, तो इससे धान का उत्पादन कम होगा और इसका सीधा प्रभाव किसानों की आय पर पड़ेगा। हालांकि, यदि किसानों को सही विकल्प दिए जाएं और उन्हें इस बदलाव के लिए समय और संसाधन मुहैया कराए जाएं, तो वे इस दिशा में सकारात्मक कदम उठा सकते हैं।
पंजाब में धान की खेती पर रोक और भूजल संरक्षण के प्रयास न केवल राज्य के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हैं। राज्य के जल संसाधनों को बचाने और पर्यावरण की रक्षा के लिए यह नीति जरूरी है। लेकिन इसे सफल बनाने के लिए सरकार और किसानों के बीच तालमेल आवश्यक है। एक सामूहिक प्रयास ही पंजाब के पर्यावरण को सुरक्षित कर सकता है और इसे जल संकट से उबार सकता है।
पंजाब में धान की खेती पर रोक और भूजल संरक्षण की दिशा में उठाए जा रहे कदम राज्य के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। जैसे-जैसे भूजल स्तर लगातार गिर रहा है, राज्य की कृषि नीति में बदलाव की आवश्यकता महसूस हो रही है। नई कृषि नीति का उद्देश्य धान की खेती को नियंत्रित कर भूजल के अति प्रयोग को रोकना है, साथ ही पराली जलाने की समस्या से निपटना है।
हालांकि, यह बदलाव किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यदि सही समर्थन और विकल्प प्रदान किए जाएं, तो यह नीति राज्य के पर्यावरण और जल संसाधनों की रक्षा में प्रभावी साबित हो सकती है। सरकार और किसान संगठनों के बीच सहयोग और समझदारी इस प्रक्रिया को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। अंततः, एक स्थिर और टिकाऊ कृषि व्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि सभी हितधारक मिलकर काम करें और दीर्घकालिक समाधान की दिशा में प्रयासरत रहें।
Source- dainik jagran