आज के समय में जलवायु परिवर्तन एक विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है। इसके प्रभावों से न केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। विशेष रूप से, नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य इस परिवर्तन से सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है। भारत में हर घंटे औसतन 345 नवजात समय से पहले जन्म ले रहे हैं। वैश्विक स्तर पर हर दो सेकंड में एक नवजात समय से पहले पैदा होता है और हर 40 सेकंड में एक की मृत्यु हो जाती है। यह खुलासा फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। यह अध्ययन साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन इसका प्रमुख कारण है।
जलवायु परिवर्तन और नवजात स्वास्थ्य:
जलवायु परिवर्तन का बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ रहा है। तापमान में वृद्धि के कारण समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या और उनकी मौतों की दर बढ़ रही है।”
रिसर्च
जलवायु परिवर्तन के नवजातों पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। यह बढ़ता तापमान और मौसम की अनिश्चितता कई तरह की समस्याओं को जन्म दे रहे हैं, जिनमें से कुछ नवजात शिशुओं के लिए अत्यधिक खतरनाक हो सकते हैं।
गर्भावस्था पर प्रभाव: अत्यधिक गर्मी के कारण गर्भवती महिलाओं को अधिक तनाव और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसका सीधा असर गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। समय से पहले जन्म और कम वजन वाले शिशु होने की संभावना बढ़ जाती है।
वायु प्रदूषण: जलवायु परिवर्तन के कारण वायु प्रदूषण की मात्रा भी बढ़ रही है। गर्भवती महिलाओं के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से शिशु के फेफड़ों और अन्य अंगों का विकास प्रभावित हो सकता है। यह अस्थमा और अन्य सांस संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है।
पानी की कमी और गुणवत्ता: बढ़ते तापमान और अनियमित बारिश के कारण पानी की कमी और उसकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। इससे नवजात शिशुओं में जलजनित रोगों का खतरा बढ़ रहा है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव
नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य कमजोर होता है और वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अधिक प्रभावित होते हैं। निम्नलिखित बिंदुओं पर इसका खास प्रभाव देखा जा सकता है:
सांस की बीमारियाँ: जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और प्रदूषण से नवजात शिशुओं में सांस संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है।
पोषण संबंधी समस्याएँ: गर्मी के कारण फसल उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे खाद्य सामग्री की कमी हो सकती है। इससे नवजात शिशुओं में पोषण की कमी और उससे जुड़ी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
संक्रमण और रोग: जलवायु परिवर्तन के कारण जलजनित और मच्छर जनित रोगों का प्रकोप बढ़ रहा है। नवजात शिशु इन रोगों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और इससे उनकी मृत्यु दर बढ़ सकती है।
समाधान और उपाय
जलवायु परिवर्तन के इस गंभीर समस्या का समाधान खोजना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार, स्वास्थ्य संगठन और समाज को मिलकर इसके लिए प्रयास करने होंगे।
जलवायु अनुकूलन योजनाएँ: सरकारों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए नीतियाँ बनानी होंगी।
स्वास्थ्य सेवाओं की सुदृढ़ता: स्वास्थ्य सेवाओं को नवजात शिशुओं के अनुकूल बनाना आवश्यक है ताकि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बच सकें।
जन जागरूकता: समाज में जागरूकता फैलाने की जरूरत है ताकि लोग जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों को समझ सकें और अपने स्तर पर योगदान दे सकें।
जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के शोधकर्ताओं ने 29 निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर शोध किया है। इसके अनुसार, नवजात शिशुओं की मृत्यु का चार प्रतिशत से अधिक हिस्सा जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले अत्यधिक और न्यूनतम तापमान से जुड़ा है। यह निष्कर्ष नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
18 साल में 1.75 लाख नवजातों की मौत:
शोधकर्ताओं के अनुसार, इन 29 देशों में हर साल नवजात शिशुओं की मृत्यु का औसतन 1.5 प्रतिशत हिस्सा अत्यधिक तापमान से जुड़ा था। वहीं, लगभग तीन प्रतिशत मौतें अत्यधिक ठंड के कारण हुईं। इस 18 साल की अवधि में नवजात शिशुओं की गर्मी से संबंधित 32 प्रतिशत मौतों के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार था। इसका मतलब है कि इस अवधि में 1.75 लाख से अधिक नवजातों की मौतें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से हुईं।

शोध के आंकड़े:
- जलवायु परिवर्तन के कारण 2001-2019 के दौरान औसत वार्षिक तापमान में 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई।
- अत्यधिक तापमान के कारण नवजात शिशुओं की मृत्यु पर ग्लोबल वार्मिंग का सबसे अधिक प्रभाव उप-सहारा अफ्रीकी देशों में देखा गया।
- पाकिस्तान, माली, सिएरा लियोन और नाइजीरिया में तापमान से संबंधित नवजात मृत्यु दर सबसे अधिक थी।
- प्रति 1 लाख जीवित जन्मों में 160 से अधिक मौतें बढ़े हुए तापमान के कारण हुईं।
नवजात शिशुओं में शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता अधूरी होती है। उनका शरीर गर्मी का सामना करने के लिए पूरी तरह विकसित नहीं होता है। उच्च चयापचय और कम पसीने की दर उनके लिए शरीर से अतिरिक्त गर्मी को निकालना मुश्किल बना देती है। 2019 में दुनिया भर में 24 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई। इनमें से 90 प्रतिशत से अधिक नवजातों की मृत्यु निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुई, खासकर उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में।
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से नवजात शिशुओं की जान पर संकट गहरा रहा है। इससे निपटने के लिए तत्काल कदम उठाना जरूरी है ताकि नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य और जीवन को सुरक्षित किया जा सके। जलवायु परिवर्तन एक सच्चाई है जिससे हम नकार नहीं सकते। इसके प्रभावों से नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। हमें इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है और इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य हमारी जिम्मेदारी है और इसे सुरक्षित रखने के लिए हमें मिलकर प्रयास करना होगा।
source and data – अमर उजाला समाचार पत्र