सभी पहाड़ी क्षेत्रों में आपदाओं की बढ़ती घटनाएं
हाल के दिनों में, भारत के पहाड़ी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इन आपदाओं के कारण लोगों की जान-माल का नुकसान और आर्थिक क्षति भी बढ़ी है। यह स्थिति पर्यावरण की कीमत पर हो रहे आर्थिक और आधुनिक विकास के दुष्परिणामों को दर्शाती है। इस लेख में, हम इन समस्याओं के कारणों और समाधान पर ध्यान देंगे।
मानव निर्मित आपदाओं का प्रभाव
जबकि स्थानीय लोग इन आपदाओं को दैवीय प्रभाव मान सकते हैं, गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि ये मानव निर्मित आपदाएं हैं। पिछले 100 वर्षों के वर्षा पैटर्न में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं देखा गया है। लेकिन पिछले 20 वर्षों में इन क्षेत्रों में वर्षा के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। अब कम समय में अधिक वर्षा सामान्य बात हो गई है, जो कि प्रकृति की अनुकूलता को दर्शाता है। जलवायु परिवर्तन और मानव जनित गतिविधियों ने इस परिवर्तन को और बढ़ावा दिया है।
आधुनिक विकास की समस्याएं
हाल के वर्षों में, पहाड़ी क्षेत्रों में नई सड़कों का निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण, और पर्यटन केंद्रों की वृद्धि देखी गई है। हालांकि, इन पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयासों ने प्रकृति को नुकसान पहुंचाया है। विशेष रूप से, सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण के दौरान पर्यावरणीय स्थिरता की अनदेखी की गई है, जिससे पहाड़ों की पारिस्थितिकी प्रणाली असुरक्षित हो गई है।
विकास की नई सोच की आवश्यकता
आधुनिक विकास की प्रक्रिया को पर्यावरणीय स्थिरता के साथ संतुलित करना आवश्यक है। सड़क निर्माण और अन्य परियोजनाओं के दौरान वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव और अति लालच भविष्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में विकास के निहितार्थों को बदलने की आवश्यकता है ताकि पर्यावरण की रक्षा की जा सके और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो सके।
समाधान की दिशा में कदम
- विकास योजनाओं में पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन: सभी विकास परियोजनाओं में पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना चाहिए और इसे नियंत्रित करने के उपायों को लागू करना चाहिए।
- भूगोल और पारिस्थितिकी का ध्यान: सड़क निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास में पहाड़ी क्षेत्रों की भूगोल और पारिस्थितिकी को ध्यान में रखना आवश्यक है।
- जनसंख्या और पर्यटन के दबाव को नियंत्रित करना: पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन और जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के उपाय किए जाने चाहिए ताकि पारिस्थितिकी संतुलित बनी रहे।
पहाड़ी क्षेत्रों में आधुनिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखना न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए बल्कि मानव समुदाय के भविष्य के लिए भी आवश्यक है। सही उपायों और योजनाओं के माध्यम से इन क्षेत्रों को सुरक्षित रखा जा सकता है, जिससे न केवल प्राकृतिक सौंदर्य और संसाधनों का संरक्षण होगा, बल्कि भविष्य की आपदाओं से बचाव भी संभव होगा।
Source – दैनिक जागरण