बिहार में मिट्टी के अंदर जैविक कार्बन का उपयोग जलवायु अनुकूल कृषि के लिए विकसित किया जा रहा है। दुनिया भर के कई देशों में कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जबकि कृषि कार्यों के दौरान बड़े पैमाने पर कार्बन का उत्सर्जन होता है। इस दिशा में भारत में पहली बार बिहार के सभी जिलों में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की शुरुआत की गई है, ताकि कृषि से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके।
कार्यक्रम की शुरुआत
यह कार्यक्रम 2019 में शुरू किया गया था, जिसमें बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर समेत तीन अन्य संस्थानों को इसकी जिम्मेदारी मिली। पहले चरण में इसे बिहार के आठ जिलों में शुरू किया गया। इस प्रयोग की सफलता को देखते हुए अगले साल से इसे पूरे राज्य में लागू किया गया और बीएयू को 18 जिलों के गांवों में कार्बन उत्सर्जन कम करने की जिम्मेदारी मिली।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीक
कृषि वैज्ञानिक नई तकनीक को शामिल कर खेती के दौरान कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सफल रहे हैं। हर जिले में पांच गांवों का चयन किया गया है, और प्रत्येक गांव में 100 किसानों को शामिल किया गया है। हर किसान के लिए एक एकड़ जमीन निर्धारित की गई है, जहां वैज्ञानिक अपनी देखरेख में किसानों से खेती करवा रहे हैं। यह प्रयोग खरीफ, रबी और जायद की विभिन्न फसलों पर किया जा रहा है।
तकनीकी प्रक्रियाएं
बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने अपने अधीनस्थ जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से इस योजना का संचालन किया है। भागलपुर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. राजेश कुमार बताते हैं कि इस अभियान में सबसे पहले खेतों की लेजर लेवलिंग की गई। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए जैविक या अकार्बनिक उर्वरक प्रबंधन, कुशल जल प्रबंधन, जीरो टिलेज और फसल अवशेष प्रबंधन के साथ विविध फसलों की खेती की गई।
परिणाम और सफलता
कार्बन उत्सर्जन को कम करने के इस अभियान पर काम कर रही वैज्ञानिक डॉ. सुवर्णा राय चौधरी कहती हैं कि अलग-अलग मौसम में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों के उत्सर्जन स्तर को मापने के बाद पाया गया है कि ऐसी खेती से उत्सर्जन में 62% की कमी आती है। भागलपुर जिले के गोरहडीह गांव में जलवायु अनुकूल कृषि के मॉडल पर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉ. सुवर्ण राय चौधरी बताते हैं कि यह बिहार का पहला राज्य है, जहां जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम लागू किया जा रहा है। इससे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम हो रहा है और कार्बन उत्सर्जन भी काफी कम हो रहा है।
किसानों की भागीदारी
कुलपति डॉ. दुनिया राम सिंह के अनुसार, खेती की नई पद्धति को देखकर किसान इसे खुद भी अपना रहे हैं। इस पहल से किसानों को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है और उन्हें पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक कर कृषि कार्य के दौरान कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है।
आर्थिक लाभ
बिहार के कृषि प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आरके सुहाने के अनुसार, कार्बन क्रेडिट को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर मापने की पहल की गई है, जिससे किसानों को भी लाभ मिलेगा। इस अभियान के तहत बिहार के 190 गांवों में पांच वर्षों से जलवायु अनुकूल खेती की जा रही है।
बिहार में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण पहल है जो न केवल कृषि से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक है, बल्कि किसानों के लिए भी लाभकारी साबित हो रही है। इस कार्यक्रम के माध्यम से न केवल मिट्टी में जैविक कार्बन को संरक्षित किया जा रहा है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
सफलता से चल रहे इस अभियान ने साबित कर दिया है कि सही तकनीकों और विधियों का उपयोग करके पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान संभव है। किसान इस नई पद्धति को अपनाकर न केवल अपनी फसलों की उत्पादकता को बढ़ा रहे हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी कम कर रहे हैं।
source and data – दैनिक जागरण