जलवायु परिवर्तन: कैसे किसान अपने ही देश में बन रहे हैं ‘परदेसी’?

saurabh pandey
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पिछले कुछ दशकों में दुनिया के कई हिस्सों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव गहराता जा रहा है। जहां पहले ग्रामीण भारत में लोग बेहतर नौकरियों और सुविधाओं के लिए शहरों की ओर रुख करते थे, अब मौसम में हो रहे बदलावों ने इस प्रवृत्ति को और तेज कर दिया है। जलवायु परिवर्तन ने खेती पर निर्भर परिवारों के सामने नए संकट खड़े कर दिए हैं, जिससे किसान अपने ही देश में आंतरिक प्रवासन के लिए मजबूर हो रहे हैं। सूखा, असमान वर्षा, बाढ़, और मौसम के अनिश्चित मिजाज ने न केवल उनकी आजीविका छीन ली है, बल्कि उन्हें खेती-बाड़ी छोड़कर अनजान इलाकों में रोजगार की तलाश में भटकने को भी मजबूर कर दिया है।

किसान क्यों हो रहे हैं प्रभावित?

भारत में अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या की आजीविका का आधार कृषि है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित मानसून, बेमौसम बारिश, बढ़ता तापमान, और सूखा किसानों की उपज को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। जहां एक तरफ खरीफ फसल असमय बारिश से नष्ट हो रही है, वहीं दूसरी तरफ रबी फसल को अनियमित वर्षा और सूखे की मार झेलनी पड़ती है।

जलवायु संकट के कारण उपज में कमी आने से न केवल किसान आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं, बल्कि उनके कर्ज बढ़ने का खतरा भी बढ़ रहा है। पानी की कमी और मिट्टी की उर्वरता घटने के कारण खेती पर निर्भर परिवार अन्य विकल्पों की तलाश में शहरों का रुख कर रहे हैं।

आंतरिक पलायन: एक अनदेखा संकट

अक्सर प्रवासन पर चर्चा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय पलायन का उल्लेख ज्यादा होता है, लेकिन आंतरिक प्रवासन भी तेजी से एक बड़ी चुनौती बन रहा है।

सूखा-प्रभावित किसान अब मजदूरी या छोटे व्यापारों के लिए शहरों की ओर जा रहे हैं।

मौसम अनुकूलन में सक्षम किसान भी अपने बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से परेशान होकर बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।

बाढ़ और सूखे से प्रभावित राज्यों जैसे राजस्थान, बिहार, उड़ीसा और असम से लोग निकटवर्ती राज्यों में प्रवास कर रहे हैं।

प्रवासन का प्रभाव: शहरीकरण की रफ्तार तेज

कृषि छोड़कर बड़े पैमाने पर पलायन करने से शहरों में असमान विकास और भीषण जनसंख्या वृद्धि देखने को मिल रही है।

  • शहरी क्षेत्रों पर दबाव: बड़ी संख्या में लोगों के आने से स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार पर दबाव बढ़ रहा है।
  • संसाधनों की कमी: पहले से ही भीड़भाड़ से जूझ रहे शहरों में पानी और बिजली की आपूर्ति पर असर पड़ रहा है।
  • अनौपचारिक रोजगार: कई प्रवासी किसान मजबूर होकर रिक्शा चलाने, निर्माण मजदूरी और छोटे-मोटे व्यवसायों में काम कर रहे हैं, जहां आय सीमित और भविष्य अनिश्चित है।

महिलाओं और बच्चों पर प्रभाव

जलवायु प्रवासन का असर न केवल पुरुषों पर बल्कि महिलाओं और बच्चों पर भी पड़ता है।

गांवों से पुरुषों के पलायन के बाद, महिलाएं घर और खेतों की जिम्मेदारी संभाल रही हैं, जिससे उनका बोझ बढ़ जाता है।

बच्चे उचित शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रह जाते हैं, जिससे बाल श्रम और स्कूल ड्रॉपआउट जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।

प्रवासन रोकने के उपाय

नीति निर्माताओं को ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:

  • जलवायु-अनुकूल खेती: किसानों को सूखा प्रतिरोधी फसलों और जल संरक्षण तकनीकों के बारे में जागरूक करना जरूरी है।
  • ग्रामीण रोजगार योजनाएं: मनरेगा जैसी योजनाओं का सही क्रियान्वयन किया जाए ताकि किसानों को खेती के अलावा अन्य स्थानीय रोजगार मिल सके।
  • कृषि बीमा और ऋण सहायता: फसल खराब होने पर किसानों को तत्काल बीमा और कर्ज राहत मिलनी चाहिए, ताकि वे खेती से मुंह न मोड़ें।
  • वृक्षारोपण और जल संरक्षण: ग्रामीण क्षेत्रों में वनरोपण और जल प्रबंधन के कार्यक्रम चलाकर प्राकृतिक संसाधनों को मजबूत बनाया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता का कारण बनता जा रहा है। ग्रामीण भारत में किसानों के आंतरिक प्रवासन की प्रवृत्ति न केवल शहरों में असंतुलित विकास को जन्म दे रही है, बल्कि गांवों में परिवारिक संरचना और सामुदायिक जीवन को भी प्रभावित कर रही है। इस चुनौती से निपटने के लिए स्थायी खेती, बेहतर ग्रामीण विकास और जलवायु-अनुकूल नीतियों की आवश्यकता है ताकि किसान अपने ही देश में परदेसी बनने से बच सकें।

जलवायु परिवर्तन का असर अब सिर्फ पर्यावरणीय आपदा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आर्थिक, सामाजिक, और मानवीय संकट का रूप ले चुका है। किसानों का आंतरिक पलायन इस बात का संकेत है कि हमारी खेती-केंद्रित अर्थव्यवस्था को जलवायु के बदलते मिजाज के अनुकूल बनाना अनिवार्य हो गया है। यदि समय रहते स्थायी कृषि, ग्रामीण विकास और जलवायु अनुकूल नीतियों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो बड़े पैमाने पर पलायन ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के संतुलन को बाधित कर देगा।

सरकार और नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे कृषि सुधार, जल प्रबंधन और स्थानीय रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दें ताकि किसान अपनी जमीन छोड़ने के लिए मजबूर न हों। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास सिर्फ शहरी विकास तक सीमित न रहें, बल्कि ग्रामीण समुदायों को भी सशक्त बनाने पर जोर दिया जाए।

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