जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे गर्मी, जंगल की आग, बाढ़, सूखा, बीमारियां और समुद्र के बढ़ते स्तर ने शैक्षिक परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इससे हाल के दशकों में प्राप्त शैक्षिक लाभों को नुकसान पहुंचने का खतरा उत्पन्न हो गया है। यह खुलासा वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट (जीईएम) में हुआ है।
यूनेस्को, जलवायु संचार और शिक्षा की निगरानी और मूल्यांकन (एमईसीई) और कनाडा के सस्केचेवान विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई इस वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जलवायु संबंधी घटनाओं के कारण हर साल स्कूल बंद हो रहे हैं। इससे शिक्षा के नुकसान और छात्रों के स्कूल छोड़ने की संभावना बढ़ रही है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जलवायु संबंधी घटनाओं के कारण शिक्षा के बुनियादी ढांचे का विनाश हो रहा है, और छात्रों, अभिभावकों और स्कूल के कर्मचारियों की मृत्यु और चोट की घटनाएं बढ़ रही हैं। पिछले 20 वर्षों में चरम मौसम की घटनाओं में से कम से कम 75 प्रतिशत के परिणामस्वरूप स्कूल बंद हुए, जिससे 50 लाख या उससे अधिक लोग प्रभावित हुए।
बाढ़ और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण छात्रों और शिक्षकों की मृत्यु भी हुई है और स्कूल की इमारतों को भी नुकसान पहुंचा है। 2019 में चरम मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में से आठ निम्न या निम्न-मध्यम आय वाले देश थे। बच्चों के लिए अत्यधिक उच्च जलवायु जोखिम वाले 33 देशों में से 29 को भी नाजुक देश माना जाता है, जिसमें लगभग एक अरब लोग रहते हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि जलवायु परिवर्तन से विस्थापन का खतरा भी बढ़ जाता है। वर्ष 2022 के दौरान आपदाओं के कारण 3.26 करोड़ लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए, जो कि एक रिकॉर्ड उच्च स्तर है।
यूनेस्को की इस रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों ने शैक्षिक प्रणालियों और परिणामों को बाधित कर दिया है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में शिक्षा के बुनियादी ढांचे और शैक्षिक उपलब्धियों की रक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संगठित और सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि भावी पीढ़ियों की शिक्षा सुरक्षित रहे।
source and data – दैनिक जागरण समाचार पत्र