जलवायु परिवर्तन ने एयर टर्बुलेंस की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि की

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से दुनियाभर में वायु अशांति की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे विमानन उद्योग और यात्रियों की सुरक्षा पर गहरा असर पड़ सकता है। हाल ही में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन के अनुसार, उत्तरी गोलार्ध में 1980 से 2021 के बीच विमानों द्वारा अनुभव की जाने वाली एयर टर्बुलेंस की घटनाओं में 60-155 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, वायुमंडल में ऊर्जा की मात्रा भी बढ़ रही है, जिससे जेट स्ट्रीम की गति और वर्टिकल विंड शियर की मात्रा में वृद्धि हो रही है। इसके परिणामस्वरूप वायु अशांति के ‘अदृश्य, अप्रत्याशित’ रूप उत्तरी मध्य-अक्षांश क्षेत्रों में अधिक बार देखने को मिल रहे हैं, जिससे विमानन सेवाओं को अधिक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

ब्रिटेन के रीडिंग विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि वायु अशांति का अदृश्य रूप वर्तमान में पूर्वी एशिया में सबसे अधिक बार देखा जाता है। यहाँ के उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम की शक्ति अत्यधिक बढ़ गई है। इस प्रकार की अशांति के कारण हाल ही में गंभीर घटनाएं घटित हुई हैं, जैसे कि सिंगापुर एयरलाइंस की एक उड़ान पर म्यांमार में इरावदी बेसिन के ऊपर अचानक गंभीर टर्बुलेंस का अनुभव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप एक यात्री की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए। इसी तरह, एयर यूरोपा की एक उड़ान को तीव्र अशांति के कारण ब्राज़ील के एक हवाई अड्डे पर आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।

रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी एशिया और मध्य पूर्व में वायु अशांति की घटनाएँ विशेष रूप से बढ़ रही हैं। वर्तमान में उत्तरी गोलार्ध के विमान लगभग 7.5 प्रतिशत समय में मध्यम से गंभीर वायु अशांति का सामना कर रहे हैं, जबकि पहले यह दर लगभग 1 प्रतिशत थी।

एयर टर्बुलेंस, जिसे ‘जेट स्ट्रीम’ या ऊपरी क्षोभमंडल में तेज़ गति से चलने वाली हवा की धाराओं के पास देखा जाता है, अब एक सामान्य समस्या बनती जा रही है। इससे न केवल यात्रियों की सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न हो रहा है, बल्कि विमानन कंपनियों को भी अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

शोधकर्ताओं ने इस बढ़ती समस्या को देखते हुए, विमानन उद्योग और संबंधित क्षेत्रों को इस चुनौती का सामना करने के लिए तत्पर रहने और उचित तैयारी करने की सलाह दी है। जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि वैश्विक स्तर पर वायु यात्रा की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ठोस उपाय किए जाएं।

source and data – दैनिक जागरण

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