चिंताजनक: 3722 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन के कारण सरीसृप, उभयचर, पक्षी और स्तनधारी भी संकट में

यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव न केवल मानव जीवन पर, बल्कि पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों पर गंभीरता से पड़ रहा है। हमें तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि इन प्रजातियों को बचाया जा सके और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित रखा जा सके।

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया की 3,722 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। इनमें सरीसृप, उभयचर, पक्षी और स्तनधारी भी शामिल हैं। यह प्रजाति ऐसे इलाकों में रहती है, जहां तूफान, भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी जैसी आपदाओं का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के ग्लोब इंस्टीट्यूट से जुड़े शोधकर्ताओं ने ताजा अध्ययन में यह खुलासा किया है। अध्ययन को नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही में प्रकाशित किया गया है।

शोधकर्ताओं ने कुल 34,035 प्रजातियों पर अध्ययन किया। इनमें से 10 प्रतिशत प्राकृतिक आपदाओं के कारण खतरे में हैं जबकि 5.4 प्रतिशत प्रजातियां उच्च जोखिम में हैं। इन संकटग्रस्त प्रजातियों में 5.7 प्रतिशत पक्षी, 7 प्रतिशत स्तनधारी, 16 प्रतिशत उभयचर और 14.5 प्रतिशत सरीसृप शामिल हैं।

प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव

आपदाओं की बात करें तो तूफान के कारण 983 प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है, वहीं भूकंप के कारण 868, सुनामी के कारण 272 और ज्वालामुखी के कारण 171 प्रजातियां प्रभावित हुई हैं। इसके अलावा करीब 400 ऐसी प्रजातियों की भी पहचान की गई है, जो मानवीय हस्तक्षेप के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं। तूफान 983 प्रजातियों पर कहर बरपाता है। इनमें से 2,001 प्रजातियां ऐसी हैं, जो इन आपदाओं से गंभीर खतरे में हैं। शोध के अनुसार, इनमें से 834 सरीसृप, 617 उभयचर, 302 पक्षी और 248 स्तनधारी प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं। यह प्रजातियां मुख्य रूप से द्वीपों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र पर असर

शोधकर्ताओं का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में प्रजातियों के विलुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा असर पड़ेगा। देखा जाए तो पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलू जैसे परागण, बीजों का प्रसार, ये सभी जीवों के बीच होने वाली अंतःक्रियाओं पर निर्भर करते हैं। ऐसे में इन अंतःक्रियाओं में समन्वय के बिगड़ने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इससे न केवल प्रजातियों में तेजी से गिरावट आएगी बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को भी नुकसान पहुंचेगा।

मानवीय हस्तक्षेप कम करना होगा

अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता जोनास गेल्डमैन और वो डाल्सगार्ड का कहना है कि इनमें से आधी प्रजातियां प्राकृतिक आपदाओं के कारण विलुप्त होने के उच्च जोखिम का सामना कर रही हैं। इनमें से कई प्रजातियां उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर पाई जाती हैं, जहां पहले से ही मानव कई प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण बन चुका है। अगर इन प्रजातियों को बचाना है तो इनके क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए।

Source- अमर उजाला नेटवर्क

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