कोरोना महामारी ने सिर्फ वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य को ही नहीं बदला है, बल्कि इसने इस अवधि में जन्मे बच्चों के विकास के पथ पर भी गहरा प्रभाव डाला है। जैसे-जैसे ये बच्चे स्कूल जाने की आयु में पहुंच रहे हैं, उनके शैक्षिक और मानसिक विकास पर सम्पूर्ण ध्यान जाना जरूरी हो रहा है। दो दर्जन से ज्यादा शिक्षकों, बाल रोग विशेषज्ञों और बाल विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर किए गए अध्ययन में पता चला है कि महामारी में जन्मे बच्चे पेंसिल पकड़ने, अपनी जरूरतें बताने, अपने आवेगों पर काबू पाने और दोस्तों की मदद से अपनी समस्याओं को सुलझाने में सक्षम नहीं हैं। इन्हें सुलझाने में उन्हें काफी दिक्कतें आ रही हैं।
शिक्षाविदों, बाल रोग विशेषज्ञों और बाल मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि महामारी के दौरान जन्मे बच्चे मुख्यतः मूलभूत कौशलों में खुद परिचित करने में समस्याएं झेल रहे हैं। उनमें से कई बच्चे पेंसिल पकड़ने, अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करने, अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पाने और दोस्तों की मदद से अपनी समस्याओं को सुलझाने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं। लड़कों के मुकाबले लड़कियों को अधिक समस्याएं उठानी पड़ रही हैं, जिसका कारण मानव संबंधों में कमी, मोबाइल और टेलीविजन पर अत्यधिक समय बिताना और खेलने का मौका कम होना भी हो सकता है।
ब्रूक एलन, एक अनुभवी किंडरगार्टन शिक्षक, बताते हैं कि इस साल के छात्रों में ऐसे बच्चे भी हैं जो बोलने में मुश्किल महसूस करते हैं, अकेले शौचालय जाने में असमर्थ हैं और पेंसिल जैसे साधन को समझने में समस्या अनुभव कर रहे हैं। उनकी कक्षा में ऐसे बच्चों की उपस्थिति है जो अन्य छात्रों और शिक्षकों को हमला करने के लिए उत्तेजित होते हैं। महामारी के दौरान बच्चे मोबाइल फोन पर ज़्यादा समय बिताने लगे, जो महामारी खत्म होने के बाद स्कूल खुलने के बाद भी कम नहीं हुआ।
लेकिन महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों के मानसिक विकास पर चौंकाने वाला असर पड़ा है। ब्रूक एलन को किंडरगार्टन पढ़ाने का ग्यारह साल का अनुभव है। लेकिन इस साल पहली बार उन्हें ऐसे बच्चे मिले हैं जो मुश्किल से बोल पाते हैं, जो अकेले टॉयलेट नहीं जा सकते और कुछ बच्चे पेंसिल भी नहीं पकड़ पाते। लिसा की क्लास में ऐसे बच्चे आए हैं जो धक्का-मुक्की करते हैं, चीज़ें इधर-उधर फेंकते हैं और अपने सहपाठियों और शिक्षकों को चोट भी पहुँचाते हैं।
बाल रोग विशेषज्ञों
विशेषज्ञों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि महामारी के दौरान उनके माता-पिता कई वजहों से अत्यधिक तनाव में थे, जिसका असर उन पर पड़ा है। अगर अमेरिका की बात करें तो महामारी के दौरान पैदा हुए सभी बच्चे फिसड्डी नहीं हैं। आंकड़ों के मुताबिक अश्वेत, हिस्पैनिक और कम आय वाले बच्चे पढ़ाई और मानसिक विकास में पिछड़ रहे हैं। यह इतनी बड़ी समस्या है कि इसे अमेरिकी शिक्षा व्यवस्था में ‘महामारी सुनामी’ कहा जा रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। लेकिन फिलहाल सरकार और प्रशासन इस मामले में गंभीरता नहीं दिखा रहा है।
यॉर्क क्लेयर केन मिलर महामारी के दौरान स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे जिन्हें लंबे समय तक घर पर रहना पड़ा, वे भी गणित और पढ़ाई में पिछड़ गए हैं। इसके लिए मोबाइल-टीवी भी जिम्मेदार है। एलेन को किंडरगार्टन में पढ़ाने का ग्यारह साल का अनुभव है। इस साल पहली बार उनका सामना ऐसे बच्चों से हुआ है जो मुश्किल से बोल पाते हैं, जो अकेले शौचालय नहीं जा सकते और कुछ बच्चे पेंसिल भी नहीं पकड़ पाते।
यूनाइटेड स्टेट्स में, इस समस्या को शिक्षा प्रणाली में “महामारी सुनामी” के नाम से जाना जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार, कम आय वाले और हिस्पैनिक परिवारों से संबंधित बच्चे विशेष रूप से शैक्षिक और सामाजिक-भावनात्मक विकास में पिछड़ रहे हैं।
source and data – अमर उजाला समाचार पत्र