उच्च हिमालय में वृक्ष रेखा, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील मानी जाती है, अब ऊपर और पूर्व की ओर खिसक रही है। इस बदलाव के पीछे ग्लोबल वार्मिंग के मुकाबले मानवीय हस्तक्षेप, जैसे कि मेले और पर्यटन, ज्यादा जिम्मेदार माने जा रहे हैं। यह जानकारी जीबी पंत विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन सम्मेलन के तहत केंद्रीय हिमालयी पर्यावरण संघ चिया द्वारा किए गए शोध में सामने आई है।
2016 से 2024 तक के इस शोध ने दिखाया है कि मानवीय गतिविधियों के कारण उच्च हिमालयी क्षेत्रों में एशियाई मधुमक्खी उत्पादन को भी खतरा उत्पन्न हो रहा है, और जलवायु भी प्रभावित हो रही है। शोध में पाया गया है कि वृक्ष रेखा के खिसकने से पौधे और जीव-जंतु नीचे से ऊपर और पश्चिमी भाग से पूर्वी भाग की ओर स्थानांतरित हो रहे हैं। इस शोध में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह ने कश्मीर, उत्तराखंड, और सिक्किम सहित हिमालयी राज्यों में अनुसंधान किया।
मानवीय हस्तक्षेप का प्रभाव:
शोधकर्ताओं का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृक्ष रेखा में केवल दस फीसदी बदलाव आ रहा है, जबकि मानवीय हस्तक्षेप इसका मुख्य कारण है। तुंगनाथ क्षेत्र में पेड़ों की कलियाँ फूटने और पत्तियाँ निकलने की दर बदल रही है, और बर्फबारी के कम दिनों के कारण लकड़ी बनने की गति प्रभावित हो रही है। कश्मीर में देवदार में यह दर समय से पहले देखी गई है, जिससे पारिस्थितिकी दबाव बढ़ रहा है।
जड़ी-बूटियाँ और वन्यजीवों पर असर:
साढ़े तीन हजार मीटर की ऊँचाई पर बुरांश के पेड़, जो शिमला के चांशल दर्रे में समुद्र तल से औसतन 3560 मीटर की ऊँचाई पर पाए गए हैं, अब धीरे-धीरे खिसक रहे हैं। इसका खिसकने की दर 16 मीटर प्रति दशक दर्ज की गई है। इसी प्रकार, केदारनाथ में 370 साल पुराना हिमालयी फर भी 2.4 मीटर प्रति दशक की दर से अपना स्थान बदल रहा है।
वृक्ष रेखा के खिसकने से हिमालय के मध्य और पूर्वी भाग में जड़ी-बूटियाँ और वन्यजीव, ख़ासकर स्तनधारी, प्रभावित हो रहे हैं। बर्फ़ के जल्दी पिघलने से इन जड़ी-बूटियों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है और कई वन्यजीव पेड़ों की रेखा से ऊपर जाने लगे हैं।
शोध के प्रमुख ई. एमएस लोधी ने कहा, “यह शोध जलवायु परिवर्तन को समझने में मदद करेगा और इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता है।” कुल 11 विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक और 30 शोधकर्ताओं ने इस महत्वपूर्ण शोध में योगदान दिया है।
हिमालयी क्षेत्र में वृक्ष रेखा का खिसकना ग्लोबल वार्मिंग और मानवीय हस्तक्षेप के संयोजन का परिणाम है, जिसमें विशेष रूप से पर्यटन और अन्य मानवीय गतिविधियाँ प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। इस शोध से स्पष्ट है कि मानवीय गतिविधियाँ, जैसे कि मेले और उच्च स्तर पर पर्यटन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बढ़ा रही हैं और इसके परिणामस्वरूप हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं।
वृक्ष रेखा के खिसकने से न केवल पौधे और जीव-जंतु प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि हिमालयी जड़ी-बूटियाँ और वन्यजीव भी संकट में हैं। बर्फ़ के जल्दी पिघलने और पेड़ों के स्थानांतरित होने के कारण पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है, जो भविष्य में इन क्षेत्रों के लिए और भी बड़ी समस्याएँ पैदा कर सकता है।
शोधकर्ताओं की सिफारिश है कि इस मुद्दे को समझने और संबोधित करने के लिए जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप की महत्वपूर्ण जानकारी को शिक्षा और जागरूकता अभियानों में शामिल किया जाए। इसके अलावा, स्थानीय और वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है। इस दिशा में उठाए गए कदम न केवल हिमालय के पर्यावरण को संरक्षित करेंगे बल्कि वैश्विक जलवायु पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेंगे।
Source and data – हिंदुस्तान समाचार पत्र