उत्तराखंड में मानसून की तेज़ी से जनजीवन प्रभावित हो रहा है। शुक्रवार रात से हो रही भारी बारिश के कारण चार धाम यात्रा मार्गों पर भूस्खलन हो गया, जिससे यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा। चमोली में बदरीनाथ हाईवे 12 घंटे तक बंद रहा, उत्तरकाशी में गंगोत्री हाईवे सात घंटे और यमुनोत्री हाईवे दो घंटे तक मलबे से बाधित रहा। रुद्रप्रयाग में गौरीकुंड हाईवे पर भी मलबा गिरने से मार्ग अवरुद्ध हो गया है। सीमा सड़क संगठन की टीम मार्गों को खोलने के लिए काम कर रही है।
इस भूस्खलन से न केवल यात्रा प्रभावित हुई है, बल्कि पर्वतीय जिलों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी बाधित हो गई है। लगातार बारिश से नदियों और नालों का जलस्तर बढ़ गया है, जिससे बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। विशेष रूप से पिथौरागढ़ और बागेश्वर में स्थित रामगंगा, सरयू, काली और गोरी नदियों में जलस्तर में वृद्धि देखी जा रही है।
हिमाचल प्रदेश में बादल फटने से बाढ़, लापता लोगों की तलाश जारी
हिमाचल प्रदेश में 31 जुलाई की रात बादल फटने से आई बाढ़ में लापता लोगों की तलाश के लिए राहत कार्य जारी है। सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, और एसडीआरएफ के जवान इस अभियान में जुटे हैं। शिमला, कुल्लू और मंडी जिलों में विशेष रूप से भारी नुकसान हुआ है। मौसम विभाग ने रविवार को चंबा, कांगड़ा, किन्नौर, मंडी, शिमला और सिरमौर जिलों में भारी बारिश के कारण बाढ़ की चेतावनी जारी की है और लोगों को नदी, नालों और भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहने की सलाह दी है।
इस बीच, लाहौल घाटी में भारी बर्फबारी भी हुई है, जिससे कई सड़कें बंद हो गई हैं। दारचा-शिंकुला सड़क का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त हो गया है, जिससे यातायात बाधित हो गया है।
प्रधानमंत्री मोदी का संभावित दौरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 12 अगस्त को हिमाचल प्रदेश के बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण करने की संभावना है। इस दौरे में वह आपदा प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण करेंगे और प्रभावित लोगों से मुलाकात करेंगे। यदि यह दौरा होता है, तो हिमाचल प्रदेश के लिए बड़े राहत पैकेज की घोषणा की जा सकती है। हिमाचल में बाढ़ और भूस्खलन से भारी जान-माल का नुकसान हुआ है, और प्रधानमंत्री के दौरे से राहत कार्यों में तेजी आने की उम्मीद है।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण चार धाम यात्रा मार्गों के बाधित होने और जनजीवन प्रभावित होने की घटनाएं न केवल प्राकृतिक आपदाओं की गंभीरता को उजागर करती हैं, बल्कि उन चुनौतियों को भी सामने लाती हैं जो पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन और बुनियादी ढांचे की मजबूती के लिए आवश्यक हैं। इन घटनाओं ने यात्रियों और स्थानीय निवासियों को असुविधाओं और खतरों के साथ सामना कराया है, साथ ही आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में भी बाधा डाली है।
प्रधानमंत्री मोदी का संभावित दौरा और राहत कार्यों में तेजी की उम्मीद के बीच, यह स्पष्ट है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए ठोस और दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता है। बाढ़, भूस्खलन और अन्य जलवायु संबंधी घटनाओं के बढ़ते खतरे के मद्देनजर, न केवल आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को सुदृढ़ करना अनिवार्य है, बल्कि जलवायु अनुकूल विकास और सतत पर्यावरण प्रबंधन की दिशा में ठोस कदम उठाना भी आवश्यक है।
इस संकट ने एक बार फिर यह दिखाया है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति हमारी तैयारी और प्रतिक्रिया कितनी महत्वपूर्ण है, और यह समय है कि हम भविष्य की चुनौतियों के लिए और अधिक तैयार हों।
Source – दैनिक जागरण