कृषि की बदलती स्थिति: क्यों कम दिखने लगे हैं अब खेत?

saurabh pandey
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आजकल सड़क और राजमार्गों के किनारे हरे-भरे खेतों के दृश्य तेजी से घटते जा रहे हैं। इसके पीछे की वजह साफ है नई इमारतों, कॉलोनियों, स्कूल-कॉलेजों और विभिन्न प्रतिष्ठानों का अनियोजित निर्माण। यह बदलाव कृषि भूमि के लगातार घटते क्षेत्रफल को दर्शाता है, जो आने वाले समय में खाद्यान्न संकट को जन्म दे सकता है।

कृषि की बदलती स्थिति

हमारा देश, जो कभी कृषि प्रधान था, अब व्यवसायिक और लाभ-उन्मुखी दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा है। पहले जहां खेती गांववासियों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, वहीं अब यह घाटे का धंधा बन गई है। सरकारी नीतियों के कारण फसल के बीज, रासायनिक खाद और कृषि उपकरणों की लागत बेतहाशा बढ़ गई है। इसके साथ ही, न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसानों को राहत नहीं दे पा रहा है। इस स्थिति ने किसानों की वित्तीय स्थिति को अत्यंत कठिन बना दिया है, जिससे उनके परिवार की देखरेख, बच्चों की शिक्षा और चिकित्सा की आवश्यकताएं पूरी करना मुश्किल हो गया है।

गांवों का पलायन और खेती की स्थिति

गांवों से पलायन और छोटे-मझोले किसानों की जमीन बेचने की मजबूरी ने ‘उत्तम खेती’ की अवधारणा को बेमानी बना दिया है। इसके चलते ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हो गए हैं और किसानों को अपने परिवार की रोजी-रोटी की चिंता सताने लगी है।

आत्मनिर्भरता की कमी

वर्तमान में, गांव आत्मनिर्भरता की ओर से काफी हद तक हटा है। पहले गांवों में आवश्यक वस्तुएं पैदा होती थीं और गांव के लोग आत्मनिर्भर थे। अब सड़कों और मशीनों के बढ़ते उपयोग ने गांवों की पारंपरिक व्यवस्था को प्रभावित किया है। छोटे और मझोले किसानों की समस्याओं पर राजनीतिक दलों की उदासीनता चिंता का विषय है। किसानों को जाति और स्वार्थ के खांचे में बांटकर उनकी समस्याओं की अनदेखी की जा रही है।

भूमि अधिग्रहण और मुआवजा

अधिकांश बाईपास और विकास परियोजनाओं के तहत कृषि भूमि का अधिग्रहण कर लिया जाता है, और किसानों को उचित मुआवजा भी नहीं मिलता। कॉलोनाइजर और विकासकर्ता पहले से ही भूमि की कीमत बढ़ाने के लालच में रहते हैं। इससे किसानों की मुश्किलें बढ़ती हैं और भूमि का अतिक्रमण एक गंभीर समस्या बन जाता है।

भविष्य की चुनौती

अगर यही स्थिति जारी रही, तो आने वाले समय में यह संकट और भी गहरा सकता है। इस मुद्दे पर गहन विमर्श और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि किसानों की समस्याओं का समाधान हो सके और हमारी कृषि भूमि को संरक्षित किया जा सके।

आज खेतों की कमी और कृषि भूमि पर अतिक्रमण एक गंभीर समस्या बन चुकी है। नई इमारतों और विकास परियोजनाओं के अनियोजित निर्माण ने खेती के क्षेत्रफल को लगातार घटाया है, जिससे खाद्यान्न संकट की संभावना बढ़ रही है। सरकारी नीतियों के कारण खेती घाटे का धंधा बन चुकी है, और किसान आर्थिक दबाव में आ गए हैं। गांवों से पलायन, आत्मनिर्भरता की कमी, और भूमि अधिग्रहण की समस्याएं किसानों की स्थिति को और भी चुनौतीपूर्ण बना रही हैं। यदि इसी तरह की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो भविष्य में कृषि संकट और भी गहरा हो सकता है। इस दिशा में ठोस और गहन कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि किसानों की समस्याओं का समाधान हो सके और कृषि भूमि को संरक्षित किया जा सके।

Source- अमर उजाला

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