भारत में चरम जलवायु घटनाओं का बदलता स्वरूप: बाढ़ और सूखे के नए जोखिम

saurabh pandey
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वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर वैश्विक चुनौती के रूप में उभरकर सामने आया है, जिसका प्रभाव पृथ्वी के हर कोने पर महसूस किया जा रहा है। भारत, जो अपनी भौगोलिक विविधता के लिए जाना जाता है, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से अछूता नहीं है। चरम जलवायु घटनाओं जैसे बाढ़ और सूखा पहले से अधिक तीव्र और अप्रत्याशित हो रहे हैं। जहां एक समय सूखे से प्रभावित क्षेत्र होते थे, वहां अब बाढ़ के खतरे बढ़ रहे हैं, और बाढ़ प्रवण इलाकों में सूखा पड़ रहा है। इन बदलावों का जल चक्र और पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है, जिससे समाज और अर्थव्यवस्था को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस बदलते जलवायु परिदृश्य को समझना और इसके दुष्प्रभावों से निपटने के उपाय खोजना समय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गई है।

देश के विभिन्न हिस्सों में चरम जलवायु घटनाओं का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। पहले जहां सूखे की मार झेलने वाले इलाके होते थे, वहां अब बाढ़ के हालात बन रहे हैं, जबकि बाढ़ से जूझने वाले क्षेत्रों में सूखे का खतरा मंडरा रहा है। आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई-इंडिया के ताज़ा विश्लेषण के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में भारत के जलवायु स्वरूप में भारी बदलाव देखने को मिला है, जिससे जल चक्र भी प्रभावित हो रहा है।

बढ़ती बाढ़ और सूखा: एक बदलती तस्वीर

रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के 80% जिलों में पिछले दो दशकों के दौरान बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता में तेजी आई है। इसी तरह सौराष्ट्र में भी विनाशकारी बाढ़ देखी गई। इसके विपरीत, देश के अन्य हिस्सों जैसे दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में सूखे की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। पश्चिमी और मध्य भारत के कुछ हिस्से भी भयंकर सूखे की चपेट में हैं।

गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सूखा और बाढ़ का अप्रत्याशित पैटर्न जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों को उजागर करता है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि सूखा प्रभावित जिलों की संख्या (149) बाढ़ प्रभावित जिलों (110) से अधिक है।

जलवायु परिवर्तन और बढ़ती चरम घटनाएं

विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले 100 वर्षों में 0.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के कारण भारत के 10 में से 9 जिले चरम जलवायु घटनाओं का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के लेखक अविनाश मोहंती का कहना है कि बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और असम सहित कई राज्यों के 60% से अधिक जिलों में एक से अधिक चरम जलवायु घटनाएँ हो रही हैं।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य: अमेरिका में भी वही हालात

यह केवल भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका सहित कई देशों में भी जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं। ग्रीनहाउस गैसों, जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन, के बढ़ते उत्सर्जन ने वातावरण में गर्मी को फँसाया है, जिससे जल चक्र में अव्यवस्था आई है। इससे मौसम के पैटर्न बदल रहे हैं, और बर्फ के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे चरम जलवायु घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है।

भारत में बदलती जलवायु परिस्थितियाँ गंभीर चिंता का विषय हैं। बाढ़ और सूखे जैसी घटनाओं की अप्रत्याशितता ने न केवल पर्यावरणीय संकट बढ़ाया है, बल्कि इसके कारण किसानों और ग्रामीण समुदायों पर भी बड़ा आर्थिक और सामाजिक दबाव पड़ा है। यह आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सशक्त नीति और जागरूकता कार्यक्रम लागू किए जाएं, ताकि भविष्य में ऐसी चरम घटनाओं के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।

भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे की अप्रत्याशितता और तीव्रता में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे न केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हो रहा है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। जहां पहले सूखा पड़ता था, वहां अब बाढ़ आ रही है, और जहां बाढ़ का खतरा होता था, वहां सूखा पड़ रहा है। यह बदलती जलवायु घटनाएँ भविष्य में अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, इसलिए सरकार, समाज और प्रत्येक व्यक्ति को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे ताकि जलवायु परिवर्तन के इन खतरों से प्रभावी रूप से निपटा जा सके। जागरूकता, बेहतर नीति और दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।

Source- amar ujala

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