केंद्र सरकार का बड़ा कदम: एंटीबायोटिक उपयोग के लिए नए नियम लागू करने की योजना

saurabh pandey
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भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एंटीबायोटिक के अनुचित उपयोग के बढ़ते मामलों के मद्देनजर, केंद्र सरकार ने एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून लागू करने की योजना बनाई है। इस दिशा में तीन नई समितियों का गठन किया गया है, जो ऊपरी श्वसन पथ, गंभीर बुखार और निमोनिया के इलाज में एंटीबायोटिक के उपयोग पर नए नियमों पर विचार करेंगी।

एंटीबायोटिक के अनियंत्रित उपयोग का मुद्दा

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने हाल ही में रिपोर्ट दी है कि देश में एंटीबायोटिक के प्रति अनियंत्रित रुझान तेजी से बढ़ रहा है। चिकित्सकों द्वारा मरीजों को बिना उचित जांच के एंटीबायोटिक लिखने की आदत ने न केवल मरीजों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है, बल्कि यह एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) के मामलों में भी वृद्धि कर रहा है।

नए नियमों की आवश्यकता

डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि एंटीबायोटिक का अनुचित उपयोग भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस एक वैश्विक संकट बनता जा रहा है, जिससे दवाओं की प्रभावशीलता कम हो सकती है और सामान्य बीमारियों का इलाज भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।

समितियों की संरचना और कार्य

तीन नई समितियों का गठन विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा किया गया है। प्रत्येक समिति विशेष रोगों पर ध्यान केंद्रित करेगी:

  • ऊपरी श्वसन पथ की समिति: इस समिति में 11 विशेषज्ञ शामिल हैं जो दिल्ली, चेन्नई, पुणे, जयपुर, भोपाल, कल्याणी, गोरखपुर, राजकोट, चंडीगढ़ और गुवाहाटी के विभिन्न चिकित्सा संस्थानों से हैं। यह समिति ऊपरी श्वसन संबंधी समस्याओं के लिए एंटीबायोटिक के उपयोग की गाइडलाइन विकसित करेगी।
  • गंभीर बुखार की समिति: इस समिति में कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल और एम्स देवघर के विशेषज्ञ शामिल हैं, जो बुखार के इलाज में एंटीबायोटिक के उपयोग पर ध्यान देंगे।
  • निमोनिया की समिति: इस समिति में आठ सदस्य हैं जो चेन्नई, पांडिचेरी, दिल्ली, एम्स मंगलगिरी, कोयंबटूर और एम्स देवघर में काम कर रहे हैं। यह समिति निमोनिया के मामलों में एंटीबायोटिक के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश बनाएगी।

बुखार के इलाज में एंटीबायोटिक का दुष्प्रभाव

आईसीएमआर के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि बुखार के प्रारंभिक लक्षणों में एंटीबायोटिक का उपयोग करना गलत हो सकता है। महामारी के बाद कुछ मरीजों में लंबे समय तक लक्षण देखे गए हैं, जिससे उनकी पहचान करना मुश्किल हो गया है। इसके कारण, मरीजों को अक्सर बिना उचित जांच के एंटीबायोटिक देने की प्रवृत्ति बढ़ गई है।

वायरल संक्रमणों की बढ़ती घटनाएं

हाल के दिनों में, इन्फ्लूएंजा ए (H1N1 और H3N2), इन्फ्लूएंजा बी, पैराइन्फ्लूएंजा 3, रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (RSV), और एडेनोवायरस जैसे श्वसन संबंधी संक्रमणों में तेजी आई है। हालिया अध्ययन में पता चला है कि सितंबर से दिसंबर 2023 के बीच दिल्ली और एनसीआर में सांस संबंधी समस्याओं के मामलों में 30 से 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

केंद्र सरकार द्वारा एंटीबायोटिक के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया यह कदम न केवल स्वास्थ्य के लिए बल्कि संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली के लिए भी महत्वपूर्ण है। नई समितियों की सिफारिशें और संशोधित गाइडलाइन निश्चित रूप से एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की समस्या को कम करने में मदद करेंगी। सभी संबंधित पक्षों को इस दिशा में मिलकर काम करना चाहिए ताकि भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाया जा सके और मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराया जा सके।

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