देश में लगभग 20 प्रतिशत आबादी झरनों पर निर्भर है, जो खासकर हिमालयी क्षेत्र और दक्षिण भारत के क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत हैं। हिमालयी क्षेत्र में करीब 50 प्रतिशत झरने सूख रहे हैं, जबकि दक्षिण के बारहमासी झरने मौसमी होते जा रहे हैं। उत्तराखंड के अल्मोड़ा क्षेत्र में झरनों की संख्या पिछले 150 वर्षों में 360 से घटकर 60 रह गई है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और अन्य राज्यों में झरनों की घटती संख्या ने स्थानीय जल आपूर्ति को प्रभावित किया है।
भारत सरकार के केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने प्राकृतिक और मानव निर्मित जल स्रोतों की दूसरी जनगणना की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस बार की गणना में झरनों को भी शामिल किया गया है, जो देश के जलवायु और पारिस्थितिक तंत्र के महत्वपूर्ण घटक हैं। पिछले साल की पहली जनगणना ने नदियों, नहरों, तालाबों, पोखरों और झीलों की स्थिति की जानकारी प्रदान की थी, लेकिन इस बार झरनों की गणना की जाएगी, जिससे जलवायु संकट और जल स्रोतों की सुरक्षा की दिशा में नई जानकारी प्राप्त होगी।
अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका ‘वाटर पॉलिसी’ द्वारा 2020 में किए गए अध्ययनों के अनुसार, भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) के कई शहरों में पानी की मांग और आपूर्ति के बीच गहरा अंतर है। मसूरी, दार्जिलिंग, और काठमांडू जैसे प्रसिद्ध हिल स्टेशनों में जल धारा और झरनों के तेजी से सूखने की समस्या सामने आई है। इसी तरह, दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट में बारहमासी झरने अब मौसमी हो गए हैं, जो कावेरी और गोदावरी जैसी प्रमुख नदियों की जल आपूर्ति को प्रभावित कर रहे हैं।
नीति आयोग ने 2018 में झरनों के संरक्षण के लिए एक कार्ययोजना तैयार की थी, लेकिन पिछले छह वर्षों में इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। हालांकि, सिक्किम ने 2009 में झरनों के संरक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाए और वर्षा जल संचयन के लिए 120 हेक्टेयर पहाड़ी क्षेत्र में गड्ढे बनाए, जिससे झरनों की स्थिति में सुधार आया।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में झरनों की स्थिति गंभीर है, और यहां के जंगलों की अंधाधुंध कटाई और निर्माण कार्य झरनों के प्राकृतिक मार्गों को बाधित कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, भूमि कटाव, और पर्यावरणीय असंतुलन ने झरनों की घटती संख्या को गति दी है।
नई जनगणना रिपोर्ट से उम्मीद की जा रही है कि झरनों के संरक्षण के लिए नई योजनाएँ बनाई जाएँगी, जो देश की जलवायु और पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा में सहायक होंगी। इस बीच, प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए कठोर नियमों और नीतियों की आवश्यकता है, ताकि हमारे झरने और जल स्रोत सुरक्षित रह सकें।
source and data – अमर उजाला