बीथोवन और नीत्शे जैसे एकांतवासी होते हैं पेड़

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वृक्ष मेरे लिए हमेशा मर्मज्ञ उपदेशक रहे हैं। वे जब जनजातियों, परिवारों, जंगलों और उपवनों में होते हैं, तब मैं उनका बहुत आदर करता हूं। वे जब अकेले होते हैं, तब तो उनका और भी ज्यादा सम्मान करता हूं। वे एकाकी इंसान की तरह हैं। वे उन संन्यासियों की तरह नहीं हैं, जो किसी कमजोरी के चलते कुछ चुरा लेते हैं, बल्कि बीथोवेन और नीत्शे जैसे महान एकांतवासी पुरुषों की तरह हैं। उनकी सबसे ऊंची शाखाओं में संसार सरसराता है, उनकी जड़ें अनंत में टिकी होती हैं, किंतु वे खुद को वहां खोते नहीं हैं। वे अपना पूरा जीवन स्वयं के स्वरूप के निर्माण में संघर्ष करते हुए बिता देते हैं। एक सुंदर और मजबूत पेड़ से पवित्र और अनुकरणीय कुछ भी नहीं है। जब एक पेड़ काटा जाता है और सूर्य के सामने अपना नग्न मृत्युधाव प्रकट करता है, तो कोई उसके तने की प्रकट करता है, तो कोई उसके तने की चमकदार डिस्क में उसका पूरा इतिहास पढ़ सकता है। उसके वर्षों के छल्ले, उसके निशान, सभी संघर्ष, पीड़ाएं, बीमारियां, खुशियां और समृद्धि सच में लिखी गई हैं। कई हमले झेले और तूफान सहे। लेकिन हर युवा किसान जानता है कि सबसे कठोर और उत्कृष्ट लकड़ी में सबसे संकीर्ण छल्ले होते हैं। पहाड़ों पर ऊंचे और निरंतर खतरे में सबसे अविनाशी, सबसे मजबूत व आदर्श पेड़ उगते हैं। कोई उनसे बात करना जानता है और उनकी बात सुनता है, वह सत्य का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। वे शिक्षा और उपदेशों का प्रवचन नहीं देते, वे विशिष्टताओं से विचलित हुए बिना, जीवन के प्राचीन नियम का उपदेश देते हैं। वृक्ष कहता है, मेरे अंदर छिपा है तत्व, चेतना और विचार। मैं सनातन जीवन हूं। शाश्वत मां ने मेरे साथ जो प्रयास किए और जोखिम उठाया, वह अद्वितीय है। मेरी त्वचा का रूप और नसें अनूठी हैं। मेरी शाखाओं में पत्तियों का सबसे छोटा खेल और मेरी छाल पर सबसे छोटा निशान अप्रतिम है। मुझे शाश्वत को आकार देने और प्रकट करने के लिए बनाया गया था। पेड़ कहता है, विश्वास ही मेरी ताकत है। मैं अपने पिता के बारे में कुछ नहीं जानता। इतना ही नहीं, मैं अपने उन हजारों बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं जानता, जो हर साल मुझसे पैदा होते हैं। हां, मैं अपने बीज के रहस्य को अंत तक जीता हूं, और किसी चीज की परवाह नहीं। मुझे इस बात का विश्वास है कि ईश्वर मेरे अंदर है। मुझे यकीन है कि मेरा श्रम पवित्र है और मैं इसी भरोसे जीता हूं। जब हम परेशान होते हैं तथा अपने जीवन को और अधिक सहन नहीं कर पाते, तब एक पेड़ हमसे कुछ कहता है; शांत रहो! अभी भी हो! मेरी तरफ देखो! जीवन आसान नहीं है और जीवन कठिन भी नहीं है। ये बचकानी बातें हैं। ईश्वर को अपने भीतर बोलने दो, और तुम्हारे विचार शांत हो जाएंगे। आप चिंतित हैं, क्योंकि आपका रास्ता मां और घर से दूर जाता है। लेकिन हर कदम और हर दिन आपको फिर से मां के पास ले जाता है। घर न इधर का है, न उधर का।दरअसल घर तो आपके भीतर है। या फिर घर कहीं है ही नहीं |

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