यमुना में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का बढ़ता स्तर: एक गंभीर चिंता

saurabh pandey
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दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (डीपीसीसी) द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में यमुना नदी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के स्तर में चिंताजनक वृद्धि का खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार, यमुना के अधिकांश हिस्सों में बीओडी का स्तर मानकों से काफी ऊपर है, जो नदी के जल की गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।

यमुना नदी में बीओडी के स्तर की स्थिति

रिपोर्ट के मुताबिक, यमुना के पल्ला क्षेत्र में ही बीओडी का स्तर मानकों के अनुसार पाया गया है, जबकि अन्य क्षेत्रों में यह स्थिति काफी खराब है। उदाहरण के लिए, असगरपुर में बीओडी का स्तर 29 मिलीग्राम प्रति लीटर, ओखला बैराज में 27, और ओखला ब्रिज पर 25 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुँच गया है। अन्य स्थानों पर भी बीओडी के स्तर में वृद्धि देखी गई है, जैसे कि आईटीओ ब्रिज पर 23, निजामुद्दीन ब्रिज पर 21, और आईएसबीटी ब्रिज पर 11 मिलीग्राम प्रति लीटर।

यमुना नदी के जल में बीओडी का मानक स्तर तीन मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे कम होना चाहिए, लेकिन रिपोर्ट में शामिल आंकड़े इसे स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि अधिकांश स्थानों पर यह स्तर चिंताजनक है।

प्रदूषण के कारण और प्रभाव

यमुना में बढ़ता बीओडी स्तर मुख्य रूप से औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू सीवेज, और अन्य कार्बनिक पदार्थों के प्रभाव के कारण हो रहा है। बीओडी पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है, और यदि यह स्तर अधिक हो, तो यह जलीय जीवन के लिए घातक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना में पानी के प्रवाह में हालिया वृद्धि के चलते कुछ हद तक स्थिति में सुधार देखने को मिल सकता है, लेकिन इसके लिए निरंतर निगरानी और उचित नीतियों की आवश्यकता है।

यमुना नदी में बीओडी के बढ़ते स्तर ने पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता उत्पन्न कर दी है। इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है, ताकि नदी की जल गुणवत्ता में सुधार किया जा सके और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित किया जा सके। इसके लिए प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करना, औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन और जागरूकता बढ़ाने के लिए सक्रिय कदम उठाना आवश्यक है।

यमुना नदी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का बढ़ता स्तर गंभीर पर्यावरणीय चिंता का विषय बन चुका है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि अधिकांश क्षेत्रों में बीओडी का स्तर मानकों से काफी ऊपर है, जो नदी के जल की गुणवत्ता और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रहा है। औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू सीवेज, और अन्य कार्बनिक प्रदूषकों के प्रभाव को नियंत्रित करना आवश्यक है, ताकि यमुना की जल गुणवत्ता में सुधार किया जा सके। यह आवश्यक है कि सरकार और संबंधित एजेंसियाँ सक्रिय रूप से कदम उठाएँ, जैसे कि प्रदूषण के स्रोतों की पहचान, प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन, और जन जागरूकता बढ़ाना। यदि समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो यमुना नदी की स्थिति और भी बिगड़ सकती है, जिसका दुष्प्रभाव पर्यावरण और स्थानीय समुदायों पर पड़ सकता है।

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