भूमि पर रेंगती मौत है मरुस्थलीकरण

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भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण, और सूखा प्रतिरोधिता इन तीन महत्वपूर्ण और चुनौती भरे विषय पर आज विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। हमारी धरती पर हर साल 16 जून को मरुस्थलीकरण और सूखा नियंत्रण दिवस भी मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के तहत इस दिन का उद्देश्य है कि दुनिया के देशों में मरुस्थलीकरण की बढ़ती समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए और इसे रोकने के उपाय सुझाए जाएं।

संक्रमण और सामाजिक प्रभाव

मरुस्थलीकरण वास्तव में भूमि पर रेंगती मौत है। एक बार यह रेत भूमि पर छा जाती है, यह जीवन को पूर्ण विनाश की ओर धकेलती है। इससे मिट्टी में नमक की मात्रा बढ़ जाती है, फसलें नहीं उगतीं, और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ जाते हैं। इसके कारण भूखा भरा जीवन असंभव बन जाता है, जिससे लाखों लोग अपनी आजीविका खो बैठते हैं।

सामाजिक असंतुलन

मरुस्थलीकरण का प्रभाव सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है। इसका सामाजिक प्रभाव भी गहरा होता है। इससे जल, भोजन और ऊर्जा स्रोतों में कमी आ जाती है, और इससे संघर्ष और पलायन की स्थिति उत्पन्न होती है। इसका सबसे अधिक प्रभाव गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर पड़ता है, जो इस संकट से निपटने के लिए तैयार नहीं होते।

वैश्विक समाधान

संयुक्त राष्ट्र ने 1994 में मरुस्थलीकरण नियंत्रण पर एक सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें 197 देशों ने भाग लिया था। इसके तहत एक व्यापक कार्ययोजना तैयार की गई थी, जिसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण से निपटना और प्रभावित क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना था।

मरुस्थलीकरण एक गंभीर संकट है, जिससे निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए जागरूकता बढ़ाने, वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करने और स्थानीय समुदायों के सहयोग से काम करने की आवश्यकता है। हमें अपनी धरती की सुरक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी और मिलकर इस संकट का सामना करना होगा।

वीर सिंह

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