भू-जल स्तर 55 फीसदी गिरा

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अमर उजाला के इस लेख में एक गंभीर वैश्विक जल संकट पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से भू-जल स्तर में चिंताजनक गिरावट पर। पिछले 75 वर्षों में भू-जल स्तर लगभग 55% कम हो गया है, जिससे विश्वभर में पेयजल की उपलब्धता पर एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। यह गिरावट वैश्विक पेयजल संकट को बढ़ाने वाली है, जिसमें सबसे बड़ा प्रभाव घनी आबादी वाले क्षेत्रों जैसे कि ग्लोबल साउथ पर पड़ेगा।

स्रोत – अमर उजाला नेटवर्क

नई दिल्ली। दुनिया भर में पानी की समस्या धीरे-धीरे और गहराने लगी है। पिछले 75 वर्षों के दौरान भू-जल स्तर खतरनाक ढंग से करीब 55 फीसदी गिर गया है। इससे शुद्ध पेयजल का संकट बढ़ जाएगा और सबसे ज्यादा असर ग्लोबल साउथ की आबादी पर पड़ेगा।

नीदरलैंड स्थित यूट्रेक्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि स्वच्छ पानी की कमी न सिर्फ मनुष्यों और पारिस्थितिक तंत्रों के दोनों पर बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न करेगी बल्कि वैश्विक आर्थिक विकास को भी बुरी तरह प्रभावित करेगी। अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि हमारी पानी की मांग में वृद्धि के साथ-साथ, हमें दुनिया भर में और बढ़ते साफ पानी के संकट का सामना करना पड़ेगा।

भविष्य में और बढ़ेगी परेशानी

दुनिया भर में पानी की कमी के और बढ़ने का अनुमान है। जलवायु बदलाव और जनसंख्या वृद्धि दोनों ही विश्व के कई क्षेत्रों में समान रूप से नहीं होंगे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पानी की कमी साल के कुछ ही महीनों में होगी। इसके विपरीत विकासशील देशों में पानी की कमी आमतौर पर बहुत ज्यादा होगी और अधिकतर साल में अधिकतर बनी रहती है।

गड़बड़ाएगी पानी की गुणवत्ता

भविष्य में पानी की गुणवत्ता गड़बड़ाएगी। आमतौर पर तेजी से होते शहरीकरण और आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन और अन्य कारणों की वजह से पानी की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाएगा। हालाँकि, इन समस्याओं के समाधान के लिए उपाय करना महत्त्वपूर्ण होगा। अध्ययन के अनुसार, दुनिया के कई हिस्सों में पानी की गुणवत्ता के मामले में स्थिति बेहद गंभीर है।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में खासकर ग्लोबल साउथ के देशों पर ध्यान केंद्रित किया है। प्रमुख रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया (भारत, इंडोनेशिया, और चीन को छोड़कर) और ओशिनिया (ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड को छोड़कर) शामिल हैं।

पानी की कमी वैश्विक स्तर पर और बढ़ने की उम्मीद है। जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि इस संकट को और गंभीर बनाएंगे, विशेष रूप से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में। उदाहरण के लिए, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में वार्षिक कुछ महीनों के लिए पानी की कमी हो सकती है, जबकि विकासशील देशों में बार-बार और अधिक गंभीर जल संकट उत्पन्न होगा। उपलब्ध पानी की गुणवत्ता भी तेजी से औद्योगिकीकरण, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण बिगड़ने की संभावना है। यह स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति को और कठिन बना देगा, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की गुणवत्ता पहले से ही एक चिंता का विषय है।अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि विकसित देशों को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन ग्लोबल साउथ में प्रभाव अधिक गंभीर होगा। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कुछ हिस्सों में सबसे अधिक प्रभावित होंगे। अध्ययन स्थायी जल प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए नीतियों और उपायों की आवश्यकता पर बल देता है। यह लेख इस बात पर जोर देता है कि जल की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि एक वैश्विक संकट से बचा जा सके जो अरबों लोगों को प्रभावित कर सकता है।

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