पूरे देश में मानसून की बारिश शुरू होने से लू के हालात खत्म हो गए हैं, लेकिन भीषण गर्मी, स्थिर हवा और अत्यधिक नमी के कारण देश के पूर्वी घाट और गंगा के मैदानी इलाकों में प्रेशर कुकर जैसे हालात बने हुए हैं। इस स्थिति को वेट ग्लव टेम्परेचर वाल्व (WBGT) के तौर पर मापा जाता है। WBGT 90 डिग्री फारेनहाइट या 32.2 डिग्री सेल्सियस का होना आमतौर पर जानलेवा माना जाता है।
अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, इस संबंध में 1951 से 2020 तक की स्थिति का अध्ययन किया गया है। उनके अनुसार, गर्मी के महीनों में मानसून के दौरान आमतौर पर देखी जाने वाली गर्म और आर्द्र स्थितियों या अत्यधिक गीली गर्मी की प्रवृत्तियों की WBGT के संदर्भ में जांच की गई है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि देश में लगभग 4.3 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक WBGT दर्ज किया गया है।
श्रमिकों के लिए घातक: यह गर्मी शारीरिक श्रम करने वालों के लिए घातक हो सकती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, मानसून के मौसम में अत्यधिक आर्द्र और गर्म परिस्थितियों में काम करने वालों के लिए नए नियम बनाने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि आर्द्र गर्मी श्रम उत्पादकता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्रों और गंगा के मैदानों में स्थिति सबसे खराब है, जहां तापमान 38 डिग्री सेल्सियस और WBGT तक पहुंचा है। शोधकर्ताओं के अनुसार, मानसून के दौरान आर्द्रता और अत्यधिक गर्मी की स्थिति भारत के लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती है।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यह स्थिति और भी खराब हो सकती है। यदि ऐसा हुआ, तो देश में मानसून के दौरान काम के प्रदर्शन में 30-40 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।
इस समस्या का हल ढूँढने के लिए समर्थन और नीति निर्माण आवश्यक है, जो इस प्रकार की विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में लोगों की सहायता कर सकते हैं।
source- अमर उजाला