भारत में मानसून के पैटर्न में बदलाव: जून में कम बारिश, सितंबर में ज्यादा

saurabh pandey
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भारत के ग्रीष्मकालीन मानसून में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं, जो कृषि और जलवायु दोनों पर व्यापक प्रभाव डाल सकते हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के हालिया आंकड़ों के अनुसार, जून में मानसून की बारिश कमजोर हो रही है, जबकि सितंबर में भारी बारिश हो रही है। इस बदलते मानसून पैटर्न का असर न केवल कृषि पर पड़ रहा है, जिसके लिए बारिश बेहद जरूरी है, बल्कि गर्म दिनों की संख्या और तीव्रता पर भी असर पड़ रहा है।

जून में कमजोर और सितंबर में बढ़ी बारिश

2008 से अब तक, नौ वर्षों में जून में सामान्य से कम और छह वर्षों में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है। जून की बारिश घट रही है, जिसका मतलब है कि मानसून जुलाई में ही शुरू हो रहा है, खासकर पूर्वी, मध्य और उत्तर-पश्चिम भारत में। इसके विपरीत, सितंबर में, जब मानसून के सामान्य से कम रहने की उम्मीद होती है, नौ वर्षों में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है।

वैज्ञानिकों की राय

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम. राजीवन ने कहा, “हम जून में मानसून के देर से या कमजोर होने और फिर सितंबर के बाद भी जारी रहने का रुझान देख रहे हैं।” यह बदलाव पश्चिमी विक्षोभ और जलवायु में देरी के कारण हो सकता है। इसके पीछे आर्कटिक समुद्री बर्फ़ का पिघलना भी एक संभावित कारण हो सकता है, हालांकि सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं।

कृषि और जलवायु पर प्रभाव

IMD के महानिदेशक एम. महापात्रा के अनुसार, हाल के वर्षों में कमज़ोर रुझान मुख्य रूप से 2009 और 2019 के अल नीनो वर्षों में कम बारिश के कारण है। 2013 से मानसून के सभी महीनों में तापमान में तेजी से वृद्धि देखी गई है, जो चिंता का विषय है।

क्षेत्रीय प्रभाव

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ के अनुसार, 1988 से 2018 तक के IMD डेटा के विश्लेषण में पाया गया है कि भारत के 62 प्रतिशत जिलों में जून में बारिश की कमी देखी गई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड में दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में शुष्क दिनों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

भविष्य की चुनौतियाँ

जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभाव हैं, और हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम इन परिवर्तनों के साथ कैसे तालमेल बिठाएँगे। मानसून के नए रुझान के लिए तैयार रहना और कृषि नीतियों में आवश्यक बदलाव करना महत्वपूर्ण है ताकि कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

सौरभ पाण्डेय

Prakritiwad.com

Source – हिन्दुस्तान समाचार पत्र

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