अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले सैटेलाइट ओजोन परत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं। ये सैटेलाइट जब अपने जीवन के आखिरी चरण में दोबारा पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो उनके जलने से एल्युमिनियम ऑक्साइड के बारीक कण बनते हैं। ये बारीक कण ओजोन परत को तेजी से नुकसान पहुंचाते हैं, जिसे पृथ्वी की सुरक्षा परत माना जाता है। एल्युमिनियम ऑक्साइड के ये बारीक कण क्लोरीन को सक्रिय करने में मदद करते हैं, जो अंततः समताप मंडल में ओजोन परत को प्रभावित करता है। अध्ययन के नतीजे जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं।
मुख्य बिंदु:
- सैटेलाइट जलने से एल्युमिनियम ऑक्साइड के बारीक कण बनते हैं, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं।
- 2030 तक 50,000 से ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च किए जा सकते हैं।
- 2022 में उपग्रहों के पुनः प्रवेश से वायुमंडल में एल्युमिनियम के प्राकृतिक स्तर में 29.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत।
खगोलशास्त्री जोनाथन मैकडॉवेल के अनुसार – सैटेलाइट के नष्ट होने से पैदा होने वाला एल्युमिनियम ऑक्साइड ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहा है। दुनिया भर में इंटरनेट की बढ़ती मांग के चलते छोटे संचार सैटेलाइट की संख्या तेजी से बढ़ रही है। एलन मस्क की स्पेसएक्स और अमेजन जैसी कंपनियां दुनियाभर में हाई-स्पीड इंटरनेट मुहैया कराने की कोशिश में लगी हुई हैं। स्पेसएक्स की स्टारलिंक 42,000 सैटेलाइट लॉन्च करने की योजना बना रही है, जबकि अमेजन की भी ऐसी ही मंशा है।

तेजी से बढ़ती चुनौती
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक 50,000 से ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च किए जा सकते हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों के अनुसार, पर्यावरण के लिए तेजी से उभर रही इस चुनौती से निपटने और ओजोन परत को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। जून 2024 तक 6,209 स्टारलिंक सैटेलाइट ऑर्बिट में होंगे, जिनमें से 6,137 काम कर रहे हैं। स्टारलिंक एक ऐसी इनोवेटिव कंपनी है जो अंतरिक्ष के जरिए हाई-स्पीड इंटरनेट मुहैया कराती है।
एल्युमिनियम ऑक्साइड में वृद्धि
अध्ययन से पता चला है कि एक सामान्य 250 किलोग्राम उपग्रह लगभग 29.8 किलोग्राम एल्युमिनियम ऑक्साइड कण उत्पन्न करता है, जो वायुमंडल में दशकों तक बना रह सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उपग्रहों से उत्सर्जित एल्युमिनियम ऑक्साइड में हाल के वर्षों में आठ गुना वृद्धि हुई है। यह वृद्धि 2016 में 2.13 मीट्रिक टन से बढ़कर 2022 में 16.6 मीट्रिक टन हो गई है। शोध से यह भी पता चला है कि 2022 में इन उपग्रहों के पुनः प्रवेश से वायुमंडल में मौजूद एल्युमिनियम के प्राकृतिक स्तर में 29.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
ओज़ोन परत का महत्व:
ओज़ोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक महत्वपूर्ण परत है जो हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (यूवी) किरणों से बचाती है। यह परत लगभग 10 से 30 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्ट्रैटोस्फीयर में स्थित है। ओज़ोन परत में ओज़ोन (O₃) गैस की सांद्रता अधिक होती है।
पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा: ओज़ोन परत सूर्य की यूवी किरणों को अवशोषित करती है, जिससे ये किरणें पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुँच पातीं। ये किरणें त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा: यूवी किरणें पौधों, समुद्री जीवन और अन्य जीवों के लिए हानिकारक होती हैं। ओज़ोन परत इन किरणों को अवशोषित करके जीवन को सुरक्षित रखती है।
ओज़ोन परत की समस्याएं:
ओज़ोन परत का क्षरण 20वीं सदी के अंत में एक गंभीर समस्या बन गया। क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हैलोन, और अन्य रसायन ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने के प्रमुख कारण बने। ये रसायन जब वायुमंडल में पहुँचते हैं, तो वे ओज़ोन अणुओं को तोड़कर उन्हें नष्ट कर देते हैं।
ओज़ोन परत की सुरक्षा के उपाय:
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: 1987 में, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत, सीएफसी और अन्य ओज़ोन-नाशक रसायनों का उत्पादन और उपयोग नियंत्रित किया गया। इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते के कारण ओज़ोन परत की स्थिति में सुधार होने लगा है।
पर्यावरणीय जागरूकता: ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है। इसके लिए शिक्षा और प्रचार-प्रसार के माध्यम से जानकारी दी जाती है।
प्राकृतिक विकल्पों का उपयोग: सीएफसी और अन्य हानिकारक रसायनों के स्थान पर प्राकृतिक और सुरक्षित विकल्पों का उपयोग प्रोत्साहित किया जा रहा है।
ओज़ोन परत हमारे ग्रह की सुरक्षा कवच है। इसे सुरक्षित रखने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
सौरभ पाण्डेय
prakritiwad.com
source – अमर उजाला समाचार पत्र
