चिंताजनक स्थिति
औषधीय गुणों के लिए विख्यात वन तुलसी का उत्पादन पिछले कुछ समय से चिंताजनक स्थिति में है। विशेषकर बद्रीनाथ धाम में तुलसी की हालत अत्यंत गंभीर हो गई है। यह पवित्र स्थान, जो हनुमान चट्टी, पांडुकेश्वर, बद्रीनाथ और उदयमठ जैसे स्थानों के लिए प्रसिद्ध है, अब वन तुलसी के विलुप्ति के कगार पर है।
उत्पादन में कमी
रिपोर्ट के अनुसार, बद्रीनाथ में वन तुलसी की पैदावार में भारी कमी देखी जा रही है। फरवरी और मार्च में बर्फबारी के कारण उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। इस साल धाम में तुलसी की खेती काफी कम हो पाई है। तुलसी माला बनाने वाले जोशीमठ क्षेत्र के तुलसी माला के उत्पादकों का कहना है कि बद्रीनाथ मंदिर परिसर में तुलसी के पौधों की संख्या अब नगण्य रह गई है। इससे न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी क्षेत्र के लोगों को नुकसान हो रहा है।
वन पंचायतों की भूमिका
वन पंचायतों की सक्रिय भागीदारी से वन तुलसी के संरक्षण और पुनर्जीवन में महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। उत्तराखंड जड़ी-बूटी शोध और विकास संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. मीनी कुँवरिया ने बताया कि वन पंचायतें अगर वन तुलसी के संरक्षण के लिए सक्रिय कदम उठाती हैं, तो इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है।
संरक्षण के प्रयास
डॉ. कुँवरिया के अनुसार, वन तुलसी के पौधों को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने के लिए वैज्ञानिक और स्थानीय समुदायों के बीच तालमेल की आवश्यकता है। स्थानीय लोगों को भी इस दिशा में जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे भी संरक्षण प्रयासों में अपना योगदान दे सकें।
वन तुलसी का संरक्षण न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसके औषधीय गुण भी अनमोल हैं। इसके विलुप्ति की कगार पर पहुंचने से न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए, वन पंचायतों और स्थानीय समुदायों को मिलकर इस दिशा में ठोस और सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है ताकि वन तुलसी का अस्तित्व बचाया जा सके और उसकी पैदावार फिर से बढ़ाई जा सके।