वायु प्रदूषण से बढ़ता अस्थमा: बच्चों और वयस्कों के लिए गंभीर चेतावनी

saurabh pandey
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वायु प्रदूषण केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य पर गहरा और दीर्घकालिक प्रभाव डाल रहा है। शोधकर्ताओं के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि हवा में मौजूद पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) के कारण अस्थमा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस संकट का असर खासतौर पर बच्चों और युवाओं पर अधिक हो रहा है। भारत, चीन और अन्य एशियाई देशों में अस्थमा के कारण युवाओं और बच्चों की मौतों में बढ़ोतरी देखी गई है।

पीएम 2.5: अदृश्य लेकिन खतरनाक

पीएम 2.5 हवा में मौजूद सूक्ष्म कण हैं, जिनका आकार मात्र 2.5 माइक्रोमीटर तक होता है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि ये आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं और सांस संबंधी समस्याएं पैदा करते हैं।

शहरी प्रदूषण के कारण वाहनों का धुआं और औद्योगिक उत्सर्जन पीएम 2.5 के मुख्य स्रोत हैं।

घरों में खाना पकाने में बायोमास या कोयले का उपयोग भी पीएम 2.5 के स्तर को बढ़ाता है, जो ग्रामीण इलाकों में बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।

बढ़ते अस्थमा के मामले: बच्चों पर विशेष प्रभाव

अध्ययन से पता चला है कि 2019 में दुनिया के लगभग 30% अस्थमा के मामले पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण हुए। बच्चों के फेफड़े और प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से विकसित नहीं होते, जिससे वे वायु प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि घरघराहट, खांसी और सांस फूलना जैसे लक्षण बच्चों में सामान्य हो गए हैं। ये लक्षण केवल अस्थायी नहीं हैं बल्कि लंबे समय में फेफड़ों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

अस्थमा और मौतों में वृद्धि

भारत और चीन जैसे देशों में युवाओं और वयस्कों की अस्थमा से होने वाली मौतों में चिंताजनक वृद्धि हुई है।

पीएम 2.5 में हर 10 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर की वृद्धि से अस्थमा का खतरा 21% तक बढ़ जाता है।

अफ्रीका, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के कृषि-आधारित क्षेत्रों में प्रदूषण के कारण वयस्कों और बच्चों दोनों की मृत्यु दर बढ़ रही है।

यहां तक कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे अपेक्षाकृत कम प्रदूषित क्षेत्रों में भी अस्थमा के मामले बढ़ते हुए देखे गए हैं।

व्यक्तिगत उपाय: मास्क पहनना एक प्रभावी तरीका

  • विशेषज्ञों के अनुसार, मास्क पहनने से प्रदूषण के कणों से बचाव किया जा सकता है, जिससे अस्थमा का जोखिम कम होता है।
  • बच्चों को बाहर खेलने के समय मास्क पहनने की आदत डलवानी चाहिए।
  • वयस्कों को सुबह और शाम जैसे प्रदूषण-भरे समय में बाहर की गतिविधियों को सीमित करना चाहिए।
  • कड़े कानूनों की आवश्यकता
  • अस्थमा से जुड़ी यह समस्या केवल व्यक्तिगत उपायों से हल नहीं हो सकती। प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारों को सख्त कानून लागू करने की आवश्यकता है।
  • वाहन-नियंत्रण और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है।
  • उद्योगों से निकलने वाले उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण लगाना अनिवार्य है।
  • ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देकर घर के अंदर होने वाले प्रदूषण को रोका जा सकता है।

सरकार की जिम्मेदारी और जागरूकता अभियान

नीति-निर्माताओं को इस संकट को गंभीरता से लेना होगा और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए नीतियों में तेजी से बदलाव करना होगा। इसके अलावा, जनजागरूकता अभियान चलाकर लोगों को प्रदूषण के खतरों से अवगत कराना भी जरूरी है।

अस्थमा और अन्य श्वसन रोगों का बढ़ता बोझ केवल स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव नहीं बढ़ा रहा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की जीवन-शैली पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। बच्चों और युवाओं की असमय मौतें भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी हैं। समय रहते अगर सरकार और समाज ने मिलकर प्रदूषण-नियंत्रण के ठोस उपाय नहीं किए, तो यह संकट और गहरा सकता है।

अस्थमा के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए कानूनी प्रतिबंधों, जनजागरूकता, और व्यक्तिगत सावधानी—सभी मोर्चों पर मिलकर काम करना जरूरी है। केवल इसी तरह हम एक स्वच्छ और स्वस्थ भविष्य की नींव रख सकते हैं।

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