असम डूब रहा है: ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों का कहर

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नई दिल्ली। असम में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के कारण बड़े पैमाने पर भूमि का कटाव हो रहा है। गांव और कस्बे नदियों में समा रहे हैं। इंडियन जर्नल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के 2024 के अंक 17 में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, मोराईगांव जिले में नदी के कटाव के आंकड़े भयावह हैं। 1988 से 2022 तक के आंकड़े बताते हैं कि जिले का एक बड़ा हिस्सा नदी में समा चुका है।

कटाव के आंकड़े

मोराईगांव जिले में नदी के बाएं किनारे पर सालाना भूमि का कटाव 81.54 मीटर और दाएं किनारे पर हर साल 83.59 मीटर भूमि का कटाव हो रहा है। ब्रह्मपुत्र और बराक तथा उनकी 50 सहायक नदियों का तेज बहाव उनके किनारों पर बसे बस्तियों और खेतों को नष्ट कर रहा है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह दशकों में भूमि का बड़ा कटाव हुआ है। 2015 में असम की 4.27 लाख हेक्टेयर भूमि कटाव के कारण जलमग्न हो गई, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.40 प्रतिशत है।

वर्षवार कटाव और विस्थापन

हर साल औसतन 8,000 हेक्टेयर भूमि नदियों के तेज बहाव के कारण कटाव का शिकार हो रही है। ब्रह्मपुत्र की औसत चौड़ाई 5.46 किलोमीटर है, लेकिन कटाव के कारण कई स्थानों पर इसकी चौड़ाई 15 किलोमीटर हो गई है। वर्ष 2001 में 5,348 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि कटाव की चपेट में आई थी, जिसमें 227 गांव प्रभावित हुए थे और 7,395 लोग विस्थापित हुए थे। वर्ष 2004 में यह आंकड़ा 20,724 हेक्टेयर भूमि, 1,245 गांव और 62,258 लोगों के विस्थापन तक पहुंच गया। वर्ष 2010 से 2015 के बीच 880 गांव नदी के बहाव में पूरी तरह बह गए।

मानसून का प्रभाव

इस वर्ष मानसून की शुरुआत में बक्सा, वारपेटा, सोनितपुर, धुवारी, कामरूप, कोकराझार, नलवारी, उदलगुड़ी आदि जिलों में कटाव गंभीर हो गया है। वैज्ञानिकों ने डिब्रूगढ़, लखीमपुर, करीमगंज जिलों में नदी किनारे के कटाव प्रभावित गांवों के दस साल के भविष्य का अनुमान लगाया है। ऐसे गांवों में करीब 25 लाख आबादी रहती है, जहां नदी हर साल उनके घरों के करीब आ रही है।

माजुली का अस्तित्व संकट में

ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों से हो रहे कटाव के कारण दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली का अस्तित्व खतरे में है। पिछले पांच दशकों में माजुली का क्षेत्रफल 1,250 वर्ग किलोमीटर कम हो गया है और यह सिकुड़ कर 800 वर्ग किलोमीटर रह गया है। रिमोट सेंसिंग के जरिए किए गए एक सर्वेक्षण में ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा अपने ही तटों को निगलने की भयावह तस्वीर सामने आई है।

कटाव रोकने के उपाय

असम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में कई बांध बनाए गए हैं। चीन ने भी अपने कब्जे वाले ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्थल पर कई विशाल बांध बनाए हैं और जैसे ही वहां अतिरिक्त पानी जमा होता है, उसे छोड़ दिया जाता है, जिससे भूमि का कटाव होता है। भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि असम में नदी के कटाव को रोकने के लिए बनाए गए अधिकांश तटबंध जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं। राज्य में नदी के लगभग 4,448 किलोमीटर किनारों पर कंक्रीट के तटबंध बनाए गए थे, लेकिन उनमें से आधे भी नहीं बचे हैं।

भूमि कटाव का एक बड़ा कारण राज्य के जंगलों और आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण भी है। ड्रेजिंग के माध्यम से नदियों की गहराई बढ़ाने की आवश्यकता है। रेत खनन पर रोक लगाई जानी चाहिए। घने जंगल भी कटाव को रोकने में सहायक होंगे। अमेरिका की मिसिसिपी नदी भी कभी इसी तरह भूमि कटाव का कारण बनी थी। 1989 में अलग तरीके से तटबंध बनाए गए और उसके साथ खेती के प्रयोग किए गए। आज वहां नदी कटाव नियंत्रण में है। ऐसे में असम के अस्तित्व को बचाने और नदी तटों की सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है, जिससे यहां का पानी और लोग दोनों बच सकें।

सौरभ पाण्डेय

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Source- अमर उजाला /पंकज चतुर्वेदी

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