अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने का किया ऐलान, डब्ल्यूएचओ से भी किया अलग

saurabh pandey
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पदभार संभालते ही तेज कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। उन्होंने न केवल अपने वादों को पूरा करने की दिशा में काम किया, बल्कि अमेरिका की विदेश नीति और आंतरिक नीतियों में भी बड़े बदलाव किए। पहले ही दिन उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से बाहर निकलने के आदेश शामिल थे।

पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका की वापसी

राष्ट्रपति ट्रंप ने सोमवार को पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके। ट्रंप ने इसे एकतरफा निर्णय करार दिया और कहा कि यह समझौता अमेरिकी अर्थव्यवस्था और रोजगार के लिए हानिकारक है। इससे पहले 2017 में, ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने इस समझौते से खुद को अलग कर लिया था। अब उनके इस कदम से वैश्विक ऊर्जा और पर्यावरणीय प्रयासों को एक बड़ा झटका लगने की संभावना है, क्योंकि स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका का योगदान अहम माना जाता है।

पेरिस जलवायु समझौता 2015 में पेरिस, फ्रांस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में 196 देशों के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था। इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखना और कोशिश करना कि यह 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रहे। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना और सभी देशों को इसके समाधान में शामिल करना है।

मुख्य उद्देश्य और प्रावधान:

ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करना: पेरिस समझौते का सबसे बड़ा लक्ष्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है।

  • नैतिक जिम्मेदारी: विकसित देशों को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है कि वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करें, क्योंकि उनका ऐतिहासिक योगदान अधिक है।
  • राष्ट्रीय योजनाएँ: प्रत्येक देश को अपनी जलवायु कार्रवाई की योजनाएँ (Nationally Determined Contributions – NDCs) तैयार करनी होती हैं और उन्हें नियमित रूप से अपडेट करना होता है। इन योजनाओं में उत्सर्जन में कमी और जलवायु परिवर्तन से संबंधित उपायों का विवरण होता है।
  • वित्तीय समर्थन: विकसित देशों से गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और हरित प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए वित्तीय सहायता देने की योजना है।
  • समीक्षा प्रक्रिया: समझौते के तहत प्रत्येक देश की प्रगति की हर 5 साल में समीक्षा की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी देश अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ रहे हैं।
  • अमेरिका का रुख: अमेरिका पहले पेरिस समझौते का हिस्सा था, लेकिन 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे छोड़ने का फैसला किया था। ट्रंप का कहना था कि यह समझौता अमेरिका के आर्थिक हितों के खिलाफ है। हालांकि, 2021 में राष्ट्रपति जो बिडेन ने इस समझौते में फिर से अमेरिका को शामिल किया, जिससे वैश्विक जलवायु कार्रवाई को नया impulso मिला।
  • पेरिस जलवायु समझौता एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन को एक वैश्विक समस्या के रूप में मानता है और देशों को एकजुट होकर इसके समाधान की दिशा में काम करने का अवसर प्रदान करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिकी अलगाव

इसके साथ ही ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ से भी अमेरिका को बाहर करने का फैसला लिया है। ट्रंप का कहना है कि डब्ल्यूएचओ चीन के प्रभाव में है और कोरोना महामारी के प्रबंधन में इसकी भूमिका संदिग्ध रही है। डब्ल्यूएचओ के प्रति अपनी निराशा और असहमति जताते हुए ट्रंप ने यह कदम उठाया। हालांकि, जो बिडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने फिर से डब्ल्यूएचओ में अपनी सदस्यता बहाल की थी, लेकिन ट्रंप का यह कदम वैश्विक स्वास्थ्य नीति में भी एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।

नागरिकता और अन्य आंतरिक नीतियां

अमेरिका में जन्म लेने वाले लोगों को नागरिकता देने की परंपरा में भी बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया गया है। अब तक, अमेरिका में जन्म लेने वाले बच्चों को नागरिकता मिल जाती थी, चाहे उनके माता-पिता अमेरिकी नागरिक न हों, लेकिन ट्रंप प्रशासन इस व्यवस्था को बदलने पर विचार कर रहा है। यह निर्णय उन परिवारों के लिए बड़ा झटका हो सकता है जो अमेरिका में जन्मे बच्चों के जरिए नागरिकता प्राप्त करने की उम्मीद रखते थे।

अन्य महत्वपूर्ण कार्यकारी आदेश

ट्रंप ने और भी कई महत्वपूर्ण आदेश जारी किए हैं। संघीय कर्मचारियों को फिर से कार्यालय लौटने का आदेश दिया गया है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान उन्हें घर से काम करने की अनुमति दी गई थी। इसके अलावा, अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति घोषित की गई और सेना को तैनात करने का आदेश दिया गया है। ट्रंप ने LGBTQ अधिकारों को बढ़ावा देने वाले कई कार्यकारी आदेशों को निरस्त भी किया है, जिसमें केवल दो लिंगों – पुरुष और महिला को मान्यता देने का आदेश भी शामिल है।

ऊर्जा संकट और टिकटॉक पर प्रतिबंध

राष्ट्रपति ट्रंप ने ‘राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल’ की भी घोषणा की, जिसका उद्देश्य देश में ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना है और अमेरिका को ऊर्जा के क्षेत्र में एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभरने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है। इसके साथ ही ट्रंप ने टिकटॉक पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून के प्रवर्तन पर 75 दिनों की रोक भी लगाई है, क्योंकि वह चाहते हैं कि अमेरिका के पास टिकटॉक का 50 प्रतिशत हिस्सा हो।

डोनाल्ड ट्रंप के इन फैसलों से अमेरिका की आंतरिक और बाहरी नीतियों में बड़ा बदलाव आ सकता है। पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका का बाहर होना और डब्ल्यूएचओ से अलग होना वैश्विक स्तर पर अमेरिका की भूमिका पर सवाल खड़े कर सकता है। वहीं, आंतरिक नीतियों में बदलाव और नागरिकता के नियमों में परिवर्तन से अमेरिकी समाज में भी हलचल मच सकती है। ट्रंप के ये फैसले आने वाले समय में अमेरिकी राजनीति और वैश्विक संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।

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