देश में अधिक कार्बन अवशोषण में हरित आवरण की बड़ी भूमिका

saurabh pandey
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दुनिया भर में वायुमंडल में CO2 का वर्तमान स्तर बढ़ रहा है, जिससे अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन और तेजी से खतरनाक प्रभाव हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए सभी देशों को तेजी से कार्बन मुक्त होने की जरूरत है।

एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि भारत में हरित आवरण ने पिछले दशक में वार्षिक उत्सर्जन की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित किया है, लेकिन सूखे जैसी चरम जलवायु घटनाओं के दौरान कार्बन पृथक्करण की दर में कमी आई है। यह अध्ययन भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER), भोपाल द्वारा किया गया।

वनस्पति की भूमिका महत्वपूर्ण

शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन में वनस्पति की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया गया है। हरी वनस्पति प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करती है और इसे श्वसन के माध्यम से वापस हवा में छोड़ती है।

सैटेलाइट डेटा से अध्ययन

IISER-भोपाल के शोधकर्ताओं ने मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर बायोजियोकेमिस्ट्री (जर्मनी), यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर (यूनाइटेड किंगडम) और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (भारत) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर 2012 से 2022 तक उपग्रह डेटा का विश्लेषण किया।

CO2 अवशोषण का संतुलन

IISER भोपाल में पृथ्वी और पर्यावरण विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर धन्यलक्ष्मी पिल्लई ने कहा कि CO2 के इस अवशोषण और उत्सर्जन के बीच समग्र संतुलन को “नेट इकोसिस्टम एक्सचेंज” (NEE) कहा जाता है। जब NEE सकारात्मक होता है, तो इसका मतलब है कि पारिस्थितिकी तंत्र अधिक कार्बन छोड़ रहा है। जब यह नकारात्मक होता है, तो इसका अर्थ है कि वनस्पति प्रभावी रूप से कार्बन संग्रहीत कर रही है।

उन्होंने बताया, “पिछले दशक में भारत के हरित पारिस्थितिकी तंत्र ने सालाना उत्सर्जित कार्बन की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित किया है।” अध्ययन के अनुसार, वार्षिक NEE अनुमान 3800 से 5300 मिलियन टन तक है।

जलवायु चरम सीमाओं का प्रभाव

अध्ययन की सह-लेखिका अपर्णा रवि ने बताया कि कार्बन अवशोषण की यह दर प्रभावशाली है, लेकिन जलवायु चरम सीमाओं के दौरान यह कम हो जाती है। वैज्ञानिकों ने यह भी अध्ययन किया कि विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ CO2 अवशोषण में किस प्रकार सहायक होती हैं।

प्रो. पिल्लई ने कहा कि देश में सदाबहार वन प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से CO2 को अवशोषित करने में अत्यधिक कुशल हैं। हालांकि, मध्य भारत के पर्णपाती वन वातावरण में अधिक कार्बन छोड़ते हैं, क्योंकि वहां पौधों की श्वसन प्राथमिक उत्पादकता से अधिक थी। उन्होंने बताया, “ये वनस्पतियाँ कार्बन स्रोत के रूप में कार्य करते हुए प्रति वर्ष 2100 लाख टन कार्बन छोड़ती हैं।”

यह अध्ययन दर्शाता है कि भारत का हरित आवरण कार्बन पृथक्करण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए अधिक संवहनीय नीतियों और वनीकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता है। चरम जलवायु घटनाओं के दौरान कार्बन पृथक्करण की दर में कमी को नियंत्रित करने के लिए अनुसंधान और सतत विकास प्रयासों को मजबूत करना होगा।

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