छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसका प्रभाव न केवल वन्यजीवों पर पड़ रहा है, बल्कि यह किसानों के लिए भी बड़ा खतरा बन चुका है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह सामने आया है कि उन क्षेत्रों में जहां हाथियों की गतिविधि अधिक होती है, वहां फसल हानि भी अधिक देखने को मिलती है। यह रिपोर्ट राज्य में कृषि क्षेत्र पर हो रहे नुकसान के कारणों और उसके समाधान के संभावित उपायों को लेकर महत्वपूर्ण संकेत देती है।
मानव-हाथी संघर्ष और फसल हानि का बढ़ता जोखिम
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं का मानना है कि हाथियों का बस्तियों की ओर बढ़ना एक ‘इकोलॉजिकल ट्रैप’ का संकेत हो सकता है। ऐसा हो सकता है कि छोटे और बिखरे हुए जंगलों में हाथियों की मौजूदगी फसल हानि के अधिक होने का कारण बनती है। इसके बजाय, बड़े और जुड़े हुए जंगलों में हाथियों को रखने से संघर्ष की स्थिति कम हो सकती है और किसानों को कम नुकसान हो सकता है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि हाथी समूहों द्वारा किए गए नुकसान की मात्रा अकेले हाथियों से अधिक होती है।
भारत में हाथियों की स्थिति और संघर्ष का आंकलन
वैश्विक स्तर पर एशियाई हाथियों की संख्या लगभग 50,000 है, जिनमें से 60% से अधिक भारत में पाए जाते हैं। हर साल 500 से अधिक लोग मानव-हाथी संघर्ष में अपनी जान गंवा देते हैं, जबकि 11 मिलियन हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि प्रभावित होती है। इस संघर्ष से न केवल वन्यजीवों की स्थिति प्रभावित होती है, बल्कि यह किसानों की आजीविका पर भी गहरा असर डालता है, क्योंकि कृषि भारतीय ग्रामीण आबादी का प्रमुख आय स्रोत है।
अध्यान क्षेत्र और डेटा संग्रहण
यह अध्ययन छत्तीसगढ़ के 10 वन प्रभागों में किया गया, जिनमें सुरगुजा, सुरजपुर, बलरामपुर, जशपुर, मनेन्द्रगढ़, कोरिया, कटघोरा, कोरबा, रायगढ़ और धरमजयगढ़ जैसे क्षेत्र शामिल थे। शोधकर्ताओं ने 2015 से 2020 तक के फसल हानि के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया और फरवरी 2019 से फरवरी 2020 के बीच 1,200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में संघर्ष प्रभावित डेटा एकत्र किया।
किसानों के लिए सबसे अधिक नुकसान करने वाली फसलें
रिपोर्ट के अनुसार, हाथियों ने सबसे अधिक गन्ने (5.81 हेक्टेयर) को नुकसान पहुँचाया, इसके बाद धान (3.50 हेक्टेयर), मक्का (1.73 हेक्टेयर), और गेहूं (0.68 हेक्टेयर) प्रभावित हुई। इससे यह स्पष्ट हुआ है कि हाथी समूहों के साथ संघर्ष अधिक नुकसानकारक साबित होता है, जबकि अकेले हाथी नुकसान में अपेक्षाकृत कम योगदान करते हैं।
संघर्ष समाधान के लिए सुझाव
इस संघर्ष के समाधान के लिए शोधकर्ताओं ने कई सिफारिशें की हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- हाथियों की निगरानी: हाथियों की गतिविधियों की निगरानी को संस्थागत बनाने की आवश्यकता है, ताकि उनके स्थान और गतिविधियों पर बेहतर नियंत्रण रखा जा सके।
- पारदर्शी और त्वरित मुआवजा योजना: किसानों को हाथी के हमलों से हुए नुकसान के लिए त्वरित और पारदर्शी मुआवजा प्रदान करने की योजना को लागू किया जाना चाहिए, जिससे उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिल सके।
- पोर्टेबल भौतिक अवरोध: हाथियों को फसलों से दूर रखने के लिए पोर्टेबल भौतिक अवरोधों का उपयोग करना एक प्रभावी उपाय हो सकता है, जो संघर्ष को कम कर सकता है।
- जल स्रोतों की निगरानी: छोटे जंगलों में जल स्रोतों की वृद्धि करने से हाथी अधिक समय तक उन क्षेत्रों में रह सकते हैं, जिससे संघर्ष और बढ़ सकता है। इसे नियंत्रित किया जाना चाहिए।
वैकल्पिक फसलों की खेती का व्यावहारिकता पर सवाल
अध्ययन में यह भी बताया गया कि वैकल्पिक फसलों की खेती एक व्यावहारिक समाधान नहीं हो सकती, क्योंकि किसान अपनी फसलों का चयन आर्थिक और सामाजिक कारणों से करते हैं। ऐसे में, छोटे और बिखरे हुए जंगलों के बजाय बड़े और जुड़े हुए वन क्षेत्रों में हाथियों को संरक्षित करना ज्यादा प्रभावी हो सकता है।
दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता
अंत में, यह रिपोर्ट यह दर्शाती है कि मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वन्यजीव संरक्षण और कृषि सुरक्षा के लिए सरकार और वन विभाग को मिलकर ठोस और समन्वित प्रयास करने होंगे। ऐसे उपायों से न केवल हाथियों के संरक्षण में मदद मिलेगी, बल्कि किसानों के लिए भी जीवन-यापन की सुरक्षा बढ़ेगी, और प्रदेश में एक संतुलित और समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखने में मदद मिलेगी।