विकास और पर्यावरण: संतुलन की अनदेखी?

saurabh pandey
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166 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण: सतत विकास के बीच जैव विविधता और कुपोषण के सवाल

सतत विकास की ओर बढ़ते हुए कई देश पर्यावरण और कार्बन उत्सर्जन की अनदेखी कर रहे हैं, जिससे पर्यावरणीय गुणवत्ता, जैव विविधता और कुपोषण जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में 166 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कई देश इन मुद्दों को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं।

2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 2030 एजेंडा अपनाया था, जिसका लक्ष्य मानव प्रगति, आर्थिक समृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार करना था। इसमें 17 सतत विकास लक्ष्य शामिल किए गए, जिनमें गरीबी उन्मूलन, भूख मिटाना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना प्रमुख हैं।

सतत विकास लक्ष्यों की अनदेखी

ऑस्ट्रेलिया, चीन और इज़राइल के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया कि विभिन्न देश इन लक्ष्यों की ओर अलग-अलग गति से आगे बढ़ रहे हैं। ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, वैश्विक विकास एक असमान गति से हो रहा है, जिससे लाखों लोग पीछे छूट सकते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है, “हमारे अध्ययन में यह सामने आया कि एसडीजी के संदर्भ में दुनिया दो भागों में बंट रही है—कुछ देश तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, जबकि अन्य अभी भी पिछड़ रहे हैं।”

राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में बदलाव

इज़राइल स्थित रीचमैन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के प्रमुख शोधकर्ता असफ़ तज़ाचोर के अनुसार, पिछले दो दशकों में कई देशों की प्राथमिकताएं बदली हैं। हालांकि, अब भी कई महत्वपूर्ण मुद्दे अनदेखे किए जा रहे हैं, जिन पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

एसडीजी स्कोर का विश्लेषण

शोधकर्ताओं ने 2000 से 2022 के बीच एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर देशों के सतत विकास स्कोर का विश्लेषण किया। उच्च स्कोर वाले देशों ने गरीबी घटाने, स्वच्छ ऊर्जा, हवा और पानी तक बेहतर पहुंच हासिल करने और नवाचार व सुशासन में उत्कृष्टता प्राप्त करने में सफलता पाई। वहीं, कम स्कोर वाले देशों को संसाधन उपयोग, अपशिष्ट प्रबंधन और कार्बन उत्सर्जन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

संतुलित और समावेशी विकास की जरूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरणीय गुणवत्ता, कार्बन उत्सर्जन, जैव विविधता की हानि और कुपोषण जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए संतुलित और समावेशी विकास की आवश्यकता है। यह अध्ययन स्पष्ट रूप से बताता है कि कौन-से कारक देशों को सतत विकास में पीछे रख रहे हैं और सुधार के लिए उन्हें किन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इन असमानताओं को समझना वैश्विक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि विकास नीतियों को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

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