तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में स्थित चमड़ा उद्योग, जो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है, अब पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। पलार नदी, जो न केवल स्थानीय जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है, बल्कि कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण है, अब प्रदूषण के कारण गंभीर संकट का सामना कर रही है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया और कई कड़े निर्देश जारी किए हैं, ताकि प्रदूषण कम किया जा सके और इस संकट से निपटा जा सके।
प्रदूषण का कारण: चमड़ा उद्योग और टेनरियां
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि स्थानीय टेनरी उद्योग प्रदूषण फैलाने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। इन उद्योगों से निकलने वाला दूषित पानी नदी में मिल रहा है, जिससे पलार नदी की जल गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ा है। इसके कारण नदी के पानी में प्रदूषण बढ़ने के साथ-साथ भूजल और आस-पास की खेती भी प्रभावित हो रही है। प्रदूषण के कारण न केवल स्थानीय निवासियों की पीने के पानी की समस्या बढ़ी है, बल्कि इसके दुष्परिणामों ने किसानों की खेती पर भी असर डाला है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि प्रभावित परिवारों को मुआवजा दिया जाए। साथ ही, अदालत ने राज्य सरकार से यह भी कहा कि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों से मुआवजा राशि की वसूली की जाए, ताकि प्रदूषण के कारण हुए नुकसान की भरपाई की जा सके। इसके लिए कोर्ट ने राजस्व वसूली अधिनियम या किसी अन्य कानूनी उपाय को अपनाने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से मिलकर एक नई समिति बनाने का आदेश दिया है। यह समिति पलार नदी के प्रदूषण की स्थिति की जांच करेगी और उसके समाधान के उपायों पर काम करेगी। समिति में सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, पर्यावरण विशेषज्ञ, राज्य और केंद्रीय अधिकारियों के साथ-साथ प्रभावित समुदायों के लोग भी शामिल होंगे।
नदी की सफाई और पर्यावरणीय संरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य को पलार नदी की सफाई और प्रदूषण कम करने के लिए एक विस्तृत योजना तैयार करनी चाहिए। इस योजना में नदी के तल से गाद हटाने, प्रदूषण को कम करने और पानी के पर्याप्त प्रवाह को सुनिश्चित करने जैसे कदम शामिल होने चाहिए। इसके साथ ही, राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि चमड़ा उद्योगों का नियमित निरीक्षण किया जाए ताकि यह जांचा जा सके कि क्या वे पर्यावरणीय मानकों का पालन कर रहे हैं।
किसानों और श्रमिकों की स्थिति
इस प्रदूषण से न केवल स्थानीय किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि चमड़ा उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति भी चिंताजनक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन श्रमिकों की स्थिति बहुत ही खराब है और उनका जीवन मैला ढोने वाले श्रमिकों जैसा हो चुका है। खासकर महिलाएं, जो इस उद्योग में काम कर रही हैं, उनकी स्थिति और भी चिंताजनक है।
पलार नदी में हो रहे प्रदूषण और इसके कारण होने वाली पर्यावरणीय क्षति ने यह साबित कर दिया है कि समय रहते अगर कदम नहीं उठाए गए, तो इससे स्थानीय समुदाय और समग्र पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के बाद, अगर राज्य और केंद्र सरकार मिलकर सही उपायों को लागू करती हैं, तो इस संकट से निपटा जा सकता है। यह मामला न केवल तमिलनाडु, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि हमें जल स्रोतों और पर्यावरणीय संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी।