हाल ही में जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2025 ने वैश्विक स्तर पर जलवायु संकट से निपटने में धीमी प्रगति को उजागर किया है। यह चिंताजनक है कि शीर्ष तीन स्थान खाली रह गए हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि कोई भी देश इस मोर्चे पर अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है।
डेनमार्क ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, लेकिन उसे भी केवल चौथा स्थान मिला। यह दर्शाता है कि या तो मानक बहुत ऊंचे हैं या देश आवश्यक प्रयासों में पीछे हैं। यह रिपोर्ट दुनिया के देशों को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने और जलवायु संकट के समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है।
जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक का महत्व
यह सूचकांक पहली बार 2005 में मॉन्ट्रियल में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था। इसका उद्देश्य देशों की जलवायु नीतियों और उनके प्रभावों का आकलन करना है। यह सूचकांक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देने वाले 63 देशों और यूरोपीय संघ की प्रगति को मापता है।
मूल्यांकन के चार आधार:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
- नवीकरणीय ऊर्जा की प्रगति
- ऊर्जा खपत
- जलवायु नीति
इस वर्ष की रिपोर्ट बताती है कि जलवायु संकट से निपटने में दुनिया के अधिकांश देश पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं।
भारत का प्रदर्शन
भारत ने इस सूचकांक में 10वां स्थान प्राप्त किया है, जो इसे शीर्ष प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल करता है। हालांकि, पिछले वर्ष की तुलना में भारत की रैंकिंग थोड़ी गिरी है (पिछले वर्ष भारत सातवें स्थान पर था)। भारत को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और ऊर्जा उपयोग में उच्च रैंकिंग मिली है, जबकि जलवायु नीति में मध्यम और नवीकरणीय ऊर्जा में निम्न स्थान प्राप्त हुआ है।
भारत की अक्षय ऊर्जा नीतियां
भारत अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। केंद्र सरकार ने सीओपी-26 सम्मेलन में ‘पंचामृत’ पहल की घोषणा की थी, जिसके तहत:
- 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने,
- कुल ऊर्जा जरूरतों का 50% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने,
- एक अरब टन कार्बन उत्सर्जन में कमी करने,
- अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% तक कम करने, और 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई गई थी।
अक्षय ऊर्जा स्रोतों की भूमिका
- सौर ऊर्जा: भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन 90.76 गीगावाट तक पहुंच चुका है। यह ऊर्जा का सबसे स्वच्छ और सुलभ स्रोत है।
- पवन ऊर्जा: देश में इसकी स्थापित क्षमता 47.36 गीगावाट है। भारत की भौगोलिक स्थिति इसे पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए अनुकूल बनाती है।
- जलविद्युत ऊर्जा: भारत की जलविद्युत उत्पादन क्षमता 52 गीगावाट तक पहुंच गई है, जो अक्षय ऊर्जा क्षेत्र का 26% हिस्सा है।
हालांकि भारत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, लेकिन कोयले पर निर्भरता अब भी एक चुनौती बनी हुई है। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से संकेत मिलता है कि भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है।
जलवायु परिवर्तन केवल एक राष्ट्रीय मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक संकट है। इसके समाधान के लिए सभी देशों को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे।