जलवायु परिवर्तन: ठंडे खून वाले जीवों पर संक्रमण का बढ़ता खतरा

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल इंसानों या पर्यावरण तक सीमित नहीं है; इसका असर ठंडे खून वाले जीवों पर भी गहरा हो रहा है। हाल ही में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय (यूबीसी) के वैज्ञानिकों ने एक व्यापक अध्ययन के माध्यम से यह पता लगाया है कि बढ़ता तापमान इन जीवों के लिए जीवाणु और फंगल संक्रमण को और अधिक घातक बना रहा है। इन निष्कर्षों ने पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के भविष्य को लेकर गंभीर चिंता पैदा की है।

ग्लोबल वार्मिंग और ठंडे खून वाले जीवों की संवेदनशीलता

वैज्ञानिकों ने 60 प्रयोगात्मक अध्ययनों के माध्यम से यह पाया कि ठंडे खून वाले जीवों जैसे कोरल, कीड़े, मछलियां और मोलस्क पूरी तरह से अपने पर्यावरणीय तापमान पर निर्भर होते हैं। तापमान में मामूली बदलाव भी उनके स्वास्थ्य और अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।

विशेष रूप से, जीवाणु संक्रमण से पीड़ित इन जीवों में तापमान बढ़ने पर मृत्यु दर में वृद्धि देखी गई। यह संकेत करता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी ने इन जीवों की संक्रमणों से लड़ने की क्षमता को कम कर दिया है।

फंगल संक्रमण का प्रभाव और थर्मल ऑप्टिमम

शोध में पाया गया कि फंगल संक्रमण से प्रभावित जीवों पर तापमान का प्रभाव “थर्मल ऑप्टिमम” पर निर्भर करता है। जब तापमान कवक के लिए आदर्श सीमा तक पहुंचता है, तो ठंडे खून वाले जीवों की मृत्यु दर बढ़ जाती है। हालांकि, जब तापमान इस सीमा से अधिक हो जाता है और कवक जीवित नहीं रह पाते, तो इन संक्रमित जीवों की मृत्यु दर में कमी देखी गई।

पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए खतरा

ठंडे खून वाले जीव पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं। ये न केवल जैव विविधता को बनाए रखते हैं, बल्कि खाद्य शृंखला और पर्यावरणीय प्रक्रियाओं का भी हिस्सा हैं। इन पर संक्रमण और तापमान के संयुक्त प्रभाव से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर संकट मंडरा सकता है।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि इन परिणामों का अध्ययन केवल ठंडे खून वाले जीवों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। बढ़ते तापमान का असर गर्म खून वाले जीवों और मनुष्यों पर भी पड़ सकता है, जिसके बारे में अभी तक स्पष्ट जानकारी नहीं है।

क्या हैं समाधान?

इस अध्ययन ने एक बार फिर इस बात को रेखांकित किया है कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करना कितना महत्वपूर्ण है। वैश्विक तापमान में वृद्धि को सीमित करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग, हरित तकनीकों को अपनाने और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव व्यापक और गहरा है। ठंडे खून वाले जीव, जो पारिस्थितिकी तंत्र के मूलभूत हिस्से हैं, संक्रमण और तापमान के संयुक्त प्रभाव के चलते गंभीर खतरे में हैं। यदि इस समस्या का समाधान समय पर नहीं निकाला गया, तो इसका प्रभाव जैव विविधता और मानव जीवन पर भी पड़ सकता है।

इस शोध के निष्कर्ष नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों के लिए चेतावनी हैं कि वे जलवायु संकट से निपटने के लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाएं। यह अध्ययन “पीएलओएस बायोलॉजी” नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जो इस समस्या की गंभीरता को और भी रेखांकित करता है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ठंडे खून वाले जीवों पर विशेष रूप से गहरा पड़ रहा है, जिससे न केवल इन जीवों का अस्तित्व संकट में है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर भी गंभीर असर पड़ सकता है। बढ़ते तापमान और संक्रमणों के संयोजन से इन जीवों की जीवन-शक्ति कमजोर हो रही है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ सकता है। यह अध्ययन हमें चेतावनी देता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। केवल तापमान वृद्धि को सीमित करने से ही हम इन संकटों को कम कर सकते हैं और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं। अंततः, इस समस्या का समाधान केवल वैश्विक सहयोग और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संभव है, ताकि भविष्य में हम सभी को सुरक्षित और समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ मिल सके।

source- down to earth

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